Archive

Search results

  1. ईश्वर प्रणिधान

    ईश्वर प्रणिधान- ईश्वर के लिए भक्ति कैसे हो सकती है, प्रेम कैसे उमड़ सकता है?  ईश्वर को अपने आप से अलग देखना पहला कदम है। समर्पण के लिए भी दो की आवश्यकता होती है, भगवान और भक्त। यह मानो कि ईश्वर ही सब कुछ है और तुम कुछ भी नहीं हो।  ईश्वर सर्वशक्तिमान और सर ...
  2. तपसः और स्वाध्याय

      तपसः जो भी तुम्हारे लिए आसान नहीं है, उससे भी इच्छापूर्वक  निकलना ही तपसः है। यह तुम्हें बड़ी मजबूती प्रदान करता है। परन्तु लोग इसे भी खींच खींच कर दिखावे के लिए प्रयोग करने लगते हैं और स्वयं को प्रताड़ित करते हैं। तपसः भी तीन तरह के होते हैं। शरीर के ल ...
  3. क्रिया योग

    देखो, जब कोई बहुत बैचेन होता है तब वो समय के बड़े जागरूक होते हैं, जैसे जैसे हर एक क्षण गुजरता है। उनका पूरा ध्यान किसी एक आगे आने वाली घटना पर होता है, समय पर नहीं। जैसे किसी ट्रेन-बस का इंतज़ार करते वक़्त, इसी धुन में रहता है, क्या ट्रेन आ रही है? क्या ट ...
  4. कर्मों की छाप से मुक्ति

    सूत्र 50: तज्जः संस्कारोऽन्यसंस्कारप्रतिबन्धी ॥५०॥ समाधि के प्रसाद स्वरुप प्राप्त आत्मिक ज्ञान का संस्कार, इस ज्ञान की छाप, बाकी सभी पुरानी छापों को, जो अनावश्यक हैं, उनको मिटा सकती है। जितना तुम ध्यान की गहराई में जाते हो, उतना ही तुम्हारे पुराने छाप मिट ...
  5. समाधि का प्रसाद

    पतंजलि कहते हैं, सूत्र 41: क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहणग्राह्येषु तत्स्थतदञ्जनतासमापत्तिः॥ जब मन की पाँचों वृत्तियों की गतिविधि तुम्हारे अधीन हो, तब समाधि संभव है। जब मन की यह पांच वृत्तियाँ क्षीण होने लगती हैं और तुम्हारे अधीन होने लगती हैं, ...
  6. सबीज समाधि

    सबीज समाधि सबीज समाधि का अनुभव तुम बाहरी कार्यकलाप के दौरान करते हो। जब तुम एक बच्चे थे, तब तुम यही अनुभव कर रहे होते थे। बच्चे इधर उधर उतावले होकर नहीं देखते हैं उनकी नजर में बड़ी स्थिरता होती है। छोटे बच्चे टकटकी लगाकर देखते हैं, उनकी आँखों में गहराई हो ...
  7. इंद्रियों का स्थायित्व और समाधि में ठहराव

    जब कभी पृथ्वी कुछ क्षण मात्र के लिए हिलती है, तब भयंकर आपदा आती है। हम इस पृथ्वी पर इसलिए रह पाते हैं क्योंकि यह स्थिर है।  कभी-कभार पृथ्वी एक क्षण के लिए हिलती भर है और सब कुछ उखाड़ फेंकती है, कुछ क्षण में ही तुम्हारा  जीवन कई दिनों के लिए थम जाता है। जब ...
  8. निद्रा और स्वप्न का ज्ञान

    Sutra 38: स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा॥ निद्रा और स्वप्न का ज्ञान बड़ा रोचक है।  हम रोज़ाना सोते हैं, पर हम कभी अपनी निद्रा को नहीं समझ पाते, उसे जान नहीं पाते, यह बड़ी विडंबना की बात है। यह ऐसे ही है जैसे किसी व्यक्ति के पास लाखों करोड़ों रुपये हों पर उसे ...
  9. गुरु एवं आध्यात्मिक पथ

    आगे पतंजलि कहते हैं, सूत्र  37: वीतरागविषयं वा चित्तम् अपने मन को आत्मज्ञानी के विचारों में ही व्यस्त रखो। तुम्हारा मन जल की तरह है, जैसे जल को जिस बर्तन में डालो, वह उसी का आकार ले लेता है उसी तरह मन को जैसे विचारों में संलग्न रखो, मन वैसा ही बन जाता है। ...
  10. दुःख के पार जाओ

      सूत्र 36: विशोका वा ज्योतिष्मती॥ कभी तुम यदि किसी दुखी व्यक्ति के पास बैठो तो देखोगे कि थोड़ी देर में तुम भी दुखी होने लगते हो। इसी तरह यदि कोई प्रसन्नता और अत्यधिक उत्साह  से भरा हुआ है और तुम उनके पास जा कर बैठो तो थोड़ी देर में तुम भी हंसना, खेलना शु ...