योग के बारे में (yoga)

वर्तमान क्षण में होना वैराग्य है। | Being in The Present Moment is Dispassion (Vairagya)

तीन तरह के गुण: सत्त्व, रजस और तमस

तीन तरह के गुण हैं- सत्व, रजस और तमस। जीवन में तीनो गुण चक्र में आते रहते हैं। जब सत्त्व अधिक होता है तब सजगता, ज्ञान, उत्साह और जीवन में रूचि बनी रहती है। जब रजोगुण आता है तब अधिक इच्छाएं, स्वार्थीपन, बैचेनी और दुःख उभरता है। जब तमोगुण आता है तब मोह, भ्रान्ति, अज्ञान और आलस आता है। जीवन में यह तीनो गुण एक के बाद एक आते हैं। जो स्वयं में केंद्रित हैं, वह साक्षीभाव से देखते हुए, भोले भाव से बिना द्वेष लाये आगे बढ़ते हैं।

द्वेष आने पर क्या होता है? तुम इसे बढ़ावा ही देते हो। तुम्हे जिस किसी से भी द्वेष है, वह तुम्हारे साथ ही रहता है और जिस कुछ के लिए तृष्णा है, वह तृष्णा भी बनी रहती है। तुम तृष्णा को ऐसे लगातार बने रहने देते हो। तीनो गुणों से बिना राग द्वेष के, कुशलता पूर्वक निकलना ही योग है। कहते हैं की "योगः कर्मषु कौशलम"- कर्म की कुशलता ही योग है। योग का अर्थ ही है “कुशलता”। योग है जीवन जीने का कौशल, मन को संभालने का कौशल, भावनाओं को सुलझाने का कौशल, लोगो के साथ रहने का कौशल, प्रेम में होने का और उसे घृणा में नहीं बदल जाने का कौशल है।

संसार में हर कोई प्रेम करता है। हर चीज प्रेम करती है परन्तु वह प्रेम अधिक समय तक प्रेम नहीं बना रहता। वह तुरंत ही, घृणा में बदल जाता है। योग ऐसी कुशलता है, ऐसा साधन है जो प्रेम को निरंतर प्रेम ही बनाये रखता है।

वैराग्य और वर्तमान क्षण

प्रश्न: प्रिय गुरुदेव, क्या वैराग्य का मन बनाने में अटक जाने की भी संभावना है? यदि बनावटी ढंग से अपने आपको हर चीज से अलग करके देखा जाए तब सहजता, प्राकृतिक स्वछंदता और जीवन से १०० प्रतिशत जुड़ाव छूट जाता है। इस संतुलन को कैसे बनाये रखें?

श्री श्री: "वैराग्य तुम्हे बांटता नहीं, बल्कि वह तुम्हे जोड़ता है। यह तुम्हे वर्तमान क्षण में पूरी तरह से जोड़ता है, इस तरह से तुम जो भी करते हो वह १०० प्रतिशत करते हो। जब तुम वैराग्य में नहीं होते हो तब तुम भूतकाल या भविष्य में अटके रहते हो, ऐसे तुम वर्तमान क्षण से अलग हो जाते हो। इस तरह तुम और बटें हुए रहते हो।"

जब मन किसी चीज की आशा में अथवा भूतकाल के पछतावे में रहता है, तब तुम वर्तमान क्षण में नहीं रहते हो। परन्तु जब तुम केंद्रित होते हो, इस क्षण में होते हो, ऐसे में जब तुम कुछ भी करते हो वह १०० प्रतिशत करते हो। तब यदि तुम भोजन कर रहे हो तो तुम हर निवाले का स्वाद लेते हो, हर कौर का आनंद लेते हो। हर क्षण हर दृश्य तुम्हारे लिए नया और ताजा होता है। तुम्हारा प्रेम हमेशा पहले प्रेम की तरह होता है। तुम हर चीज को ऐसे देखते हो जैसे पहली बार देख रहे हो।

वैराग्य तुम्हारे सुख को छीनता नहीं है, बल्कि वैराग्य ऐसे सुख देता है जो कुछ और तुम्हे दे ही नहीं सकता। शंकराचार्य जी की रचना भज गोविन्दम में एक पंक्ति है, "कस्य सुखम न करोति विरागा" अर्थात "ऐसा कौनसा सुख हैं जो वैराग्य नहीं दे सकता?" वैराग्य तुम्हे सभी सुख देता हैं क्यूंकि तुम पूरी तरह से उस क्षण में होते हो।

वैराग्य तुम्हे वर्तमान क्षण में पूरी तरह से स्थापित करता हैं। प्रत्येक क्षण एक अलौकिक अनुभव होता है।

संसार का तथाकथित वैराग्य अत्यंत सूखा लगता है। जो लोग स्वयं को बहुत वैरागी समझते हैं वह उदास हैं, वह दुखी हैं। वह संसार से भागते हैं और कहते हैं कि उन्होंने संसार को छोड़ दिया है, वह इसे ही वैराग्य समझ बैठे हैं। यह वैराग्य बिलकुल भी नहीं है। लोग दुःख से, परेशानी से और उदासीनता से भाग जाते हैं और ऐसे पलायनवादी स्वयं को वैरागी कहते हैं। जीवन में वैराग्य इस सबसे कहीं अधिक गहरा, निर्मल और मूल्यवान है। यदि तुम वैरागी होते हो तब तुम प्रसन्नता से भरे हुए होते हो, संतोष और आनंद से भरे होते हो और हर कोई ऐसा ही होना चाहता है।

सिकंदर की कथा

ग्रीस के डिओजेनेस के बारे में एक कथा है। सिकंदर ने जब उसे देखा तब डिओजेनेस को दास की तरह बंदी बनाकर बाजार ले जाया जा रहा था, जो लोग उसे बाँध कर ले जा रहे थे, वह भी दास की तरह ही दिखाई दे रहे थे। डिओजेनेस ने स्वयं ही अपने दास होने की निर्भीक घोषणा की और जोश से कहा की कौन उसे खरीदना चाहता है। उसकी सिंह की सी दहाड़ सुन कर यह समझना मुश्किल था की दास वह हैं या उसे ले जाने वाले लोग दास हैं।

सिकंदर के भारत आने से पहले उसके देश के लोगो ने उसे सलाह दी की यदि तुम्हे वहां सन्यासी मिले तो उन्हें पकड़ कर ले आया जाए क्यूंकि वह भारत में ही पाए जाते हैं और बड़े मूल्यवान होते हैं। सिकंदर जब भारत में था तब उसने सन्यासियों को पेश किये जाने का आदेश दिया पर कोई भी सन्यासी आया ही नहीं। सिकंदर ने उनके न आने पर उनके सर धड़ से अलग करने की धमकी के साथ आने का सन्देश पुनः भेजा पर फिर भी कोई नहीं आया। सिकंदर ने धमकी दी की वह उनकी वेद और पुराणों की पुस्तिकाओं को ले जायेगा। सभी पंडितो ने कहा की हाँ, आप अगले दिन ये सब ले जा सकते हैं। रात्रि में पंडितों ने अपने शिष्यों को सारे ग्रन्थ कंठस्थ करवा दिए और अगले दिन सभी सिकंदर के हवाले कर दिए गए और कहा की अब उन्हें इनकी आवश्यकता नहीं हैं।

सिकंदर को उनके ग्रन्थ नहीं, सन्यासी चाहिए थे। आखिरकार वह खुद एक सन्यासी के पास गया और उन्हें साथ चलने के लिए धमकाया, वह बोला की यदि वह साथ नहीं चलते तो उनकी मृत्यु कर दी जाएगी। सन्यासी ने कहा, वह जो चाहे कर सकते हैं। सिकंदर सन्यासी की आँखों में नहीं देख पा रहा था, उसने पहली बार एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात की जो सम्राट की भी परवाह नहीं कर रहा था। सिकंदर सन्यासी की ऐसी वैराग्य की शक्ति के सामने खड़ा नहीं हो पाया।

जब सिकंदर भारत में था, तब यहाँ लोगो ने उसे एक प्लेट में स्वर्ण की बनी रोटियां दी। सिकंदर भूखा था, उसे लगा की लोग उसका मजाक बना रहे हैं, वह चिल्लाया की उसे सादी रोटी चाहिए। लोगो ने कहा की एक सम्राट को साधारण रोटियां कैसे परोसी जा सकती है? इस पर सिकंदर भूख से चिल्लाने लगा तब लोग उसके लिए साधारण रोटियां ले कर आये और उससे बोले की क्या यह रोटियां उसके देश में नहीं मिलती हैं? इतनी साधारण रोटियां खाने के लिए इतने सारे देश और राज्य जीतने की क्या आवश्यकता थी?

सिकंदर क्षण भर के लिए हिल गया, उसे लगा यही सत्य है। वह क्यों एक राज्य के बाद दूसरा जीतने के लिए भाग रहा है? जब उसके जीवन में न लेशमात्र खुशी है न शांति, न ही उसके जीतने से वहां के लोगो का कुछ भला होता है, फिर हर गाँव और शहर को अपने नाम का ठप्पा लगा देने मात्र के लिए जीतना निरर्थक है।

ऐसा कहा जाता है की सिकंदर की अंतिम इच्छा थी की मृत्युपरांत उसके हाथ कब्र के बाहर खुले रहें, वह लोगों को यह सन्देश देना चाहता था की इतने राज्यों को जीतने के बावजूद महान सिकंदर पृथ्वी से खाली हाथ ही गया। वह यहाँ से कुछ भी न ले जा सका।

तुम संसार को देने के लिए आये हो, कुछ भी ले जाने के लिए नहीं।

वैराग्य तुम्हारे भीतर की शक्ति है, यदि तुम्हारे पास धन धान्य के देवता कुबेर भी देने आये तो तुम उनसे भी कुछ न ग्रहण करो, वह वैराग्य है। यह हठीपन और गर्व नहीं है बल्कि तुम्हारा केंद्रित होना है। जब तुम इतने शांत और केंद्रित हो तब तुम यह जान सकते हो की तुम इस संसार में देने के लिए ही आये हो, तुम्हे यहाँ से कुछ लेना नहीं है। यह ज्ञान तुम्हारे भीतर एक बड़ा परिवर्तन ले आता है।

 

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(यह ज्ञान पत्र गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के पतंजलि योग सूत्र प्रवचन पर आधारित है। पतंजलि योग सूत्रों के परिचय के बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें।)

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