वैष्णो देवी  भारत की सबसे अधिक पूजी जाने वाली देवियों में से  हैं | माँ वैष्णो को माँ पार्वती का स्वरुप माना जाता है| सामान्यतः माता को देवी भक्त और भी कई नामों जैसे त्रिकुटा, माता रानी और वैष्णवी के नाम से भी पूजते हैं| नवरात्रि के दिनों में माँ वैष्णो के महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूप की पूजा और आराधना की जाती है | 

माँ वैष्णो देवी को भगवान राम का आशीर्वाद :

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, त्रेतायुग में धरती पर असुरों का भीषण प्रकोप था | धरती के लोगों को असुरों के प्रकोप से बचाने के लिए  माँ काली, महालक्ष्मी तथा माँ सरस्वती, अपनी शक्तियां एकत्रित करके वैष्णवी के रूप में अवतरित हुईं| और असुरों के संहार के बाद धरती की रक्षा के लिए यहीं त्रिकूट पर्वत पर सदा के लिए ध्यानमग्न हो गयीं |

वैष्णवी, भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं | उन्होंने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की| उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु  के अवतार श्री राम ने देवी वैष्णवी को वचन दिया कि वे संसार में ‘वैष्णो देवी’ के रूप में प्रसिद्ध होंगी और लोगों के दुःख दूर करेंगी | 

 

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नवरात्रि में रामायण का पाठ

रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए माँ वैष्णो देवी  ने ' नवरात्रि ' मनाने का निर्णय लिया। इसलिए लोग, नवरात्रि  के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं।

वैष्णो देवी की कथा :

पंडित श्रीधर नाम के एक ब्राह्मण, देवी माँ के बहुत अनन्य भक्त थे। वे हमेशा दुर्गा माता की पूजा-प्रार्थना में लीन रहते थे | एक दिन देवी माँ ने उन्हें उनके गाँव वासियों और सन्यासियों के लिए प्रीतिभोज आयोजित करने की प्रेरणा दी|  पंडित श्रीधर बहुत गरीब थे, परन्तु माता की प्रेरणानुसार उन्होंने सभी को प्रीतिभोज के आमंत्रित किया और ऐसा कहा जाता है कि माँ वैष्णो ने स्वयं एक कन्या के रूप में अपने भक्त श्रीधर के घर जाकर, वहां श्रीधर की क्षमता से कहीं अधिक आमंत्रित लोगों को भोजन परोसा और उन्हें आशीर्वाद दिया|

भैरोंनाथ का संहार :

पंडित श्रीधर के आमंत्रण पर भैरोंनाथ नाम का एक तांत्रिक भी प्रीतिभोज में गया | उसने भोजन परोसने वाली कन्या के दिव्य स्वरुप को भांप लिया और उनकी परीक्षा लेनी चाही | ऎसी किम्वदंती है कि भैरोंनाथ ने माँ वैष्णों से मांसाहार परोसने की इच्छा जताई, देवी के कन्यारूप ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि वैष्णव ब्राह्मण के प्रीतिभोज में मांसाहार निषेध है | भैरोंनाथ ने क्रुद्ध होकर देवी का अपमान करना चाहा परन्तु देवी वहां से चली गयीं | भैरोंनाथ ने कई माह तक देवी का पीछा किया | देवी के बार- बार क्षमा करने पर भी जब भैरोंनाथ नहीं माना और (आज की कटरा; जम्मू कश्मीर के पास स्थित) त्रिकूट पर्वत पर स्थित अर्द्धकुंवारी गुफा के भीतर, तपस्या में लीन माता की तपस्या भंग कर दी तब वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरोंनाथ का संहार कर दिया |

भैरोंनाथ का सिर भवन से लगभग 3 किमी आगे जाकर गिरा, भैरोंनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने देवी माँ से प्रार्थना की कि संसार उसे अधर्मी के रूप में न याद करे|

माँ वैष्णो देवी ने तांत्रिक भैरोंनाथ पर करुणा करके उसे क्षमा कर मोक्ष प्रदान कर दिया और यह आशीर्वाद भी दिया कि माता का दर्शन तब तक पूरा नहीं माना जाएगा, जब तक भक्त वैष्णों माता के दर्शन के बाद भैरोंनाथ का दर्शन नहीं कर लेंगे |

कहाँ है वैष्णो माता का मंदिर :

माता वैष्णो देवी का मंदिर, उत्तर भारत के जम्मू जिले में कटरा नगर के समीप अवस्थित है। यह मंदिर  भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर, कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) दूर त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। 

मान्यतानुसार माँ ने इस पर्वत पर भैरोंनाथ के संहार से पूर्व 9 माह तक तपस्या की थी | इसी स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने भैरोंनाथ का वध किया था | यह स्थान 'भवन' के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहाँ  देवी काली (दाएँ), सरस्वती (बाएँ) और लक्ष्मी (मध्य), पिण्डी के रूप में गुफा में विराजमान हैं, इन तीनों पिण्डियों के इस सम्मि‍लित रूप को वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।

किसने बनवाया था मंदिर : 

माँ वैष्णो देवी का लिखित प्रमाण सबसे पहले महाभारत में देखा जाता है | ऐसा माना जाता है कि  श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने देवी माँ का ध्यान किया और विजय के लिए उनका आशीर्वाद माँगा | महाभारत में अर्जुन द्वारा की गयी देवी की प्रार्थना का अग्रलिखित श्लोक मिलता है-

“जम्बूक्तक चित्येषु नित्यं सन्निहितालये”

जिसका अर्थ है जो हमेशा जंबो में पहाड़ की ढलान पर मंदिर में विराजित हैं | संभवतः ‘जम्बो’ शब्द वर्तमान समय के ‘जम्मू’ को दर्शाता है |

ऐसा प्रमाण है कि पांडवों ने सबसे पहले कोल कंदोली और ‘भवन’ में देवी के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता ज्ञापित की थी। त्रिकूट पर्वत से सटे एक पर्वत पर स्थित पवित्र गुफा में पाँच पत्थर की संरचनाएँ भी स्थापित  हैं, जिन्हें पाँचों पांडवों की चट्टान का प्रतीक माना जाता है।

नवरात्रि में वैष्णो देवी की आराधना :

नवरात्रि देवीशक्ति  का पर्व है| इन दिनों में शक्ति की आराधना की जाती है | देवी भक्त इन विशेष नौ दिनों में ध्यान, जप, हवन और पूजा–पाठ द्वारा अपने भीतर की देवी शक्ति का आवाहन करते हैं |नवरात्रि 2022 में, आइये स्वास्थ्य और अध्यात्म की यात्रा में, एक कदम और आगे बढ़ें | सीखें सुदर्शन क्रिया 

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