चेतना की  जागृत, स्वप्न तथा सुषुप्तावस्थायें ‘त्रिपुर’ कही जाती हैं, इन्ही अवस्थाओं में  मनुष्य जीवन का अधिकतम समय व्यतीत कर देता है | 

‘तुरीय अवस्था’ या ‘ध्यान अवस्था’  की अनुपस्थिति में ; जागृत अवस्था मनुष्य को मोह -माया में लिप्त रखती है, स्वप्न अवस्था व्यक्ति को स्वप्न जगत की मिथ्या में डुबाये रखती है और निद्रा अवस्था घोर जड़ता में लीन रखती है  | जब, चेतना की चौथी और सबसे महत्वपूर्ण अवस्था “तुरीय अवस्था” शेष तीन अवस्थाओं निद्रा, स्वप्न और जागृत अवस्था के साथ सिद्ध हो जाती है तब चेतना बहुत सुन्दर हो जाती है | चेतना की यही सुन्दर स्थिति “त्रिपुरसुंदरी” है  | - गुरुदेव श्री श्री रविशंकर 

 

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भगवान शिव की नाभि  से निकले कमल पर आसीन हैं  त्रिपुरसुन्दरी :

भगवान शिव, चेतना की तुरीय अवस्था के द्योतक हैं | जीवन में ध्यानावस्था / तुरीय अवस्था  की उपस्थिति से ही निद्रा, स्वप्न और जागृत अवस्थाएं अत्यधिक  सुन्दर हो जाती हैं और एक समग्र सुन्दरतम अवस्था का जन्म होता है जो त्रिपुरसुन्दरी कहलाती है | 

इसीलिए  कथाओं में  माँ त्रिपुरसुन्दरी  को भगवान शिव ( तुरीय अवस्था ) की नाभि से निकले कमल पर आसीन दर्शाया जाता है |

सोलह कलाओं से सुसज्जित हैं, माता त्रिपुरसुन्दरी :

पुराणों में अनुसार,  माँ त्रिपुरसुंदरी भोग और मोक्ष की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। देवीभागवतम में ऐसा वर्णन मिलता है कि मां भगवती का यह  स्वरुप सौम्य और दयालु है। जो भक्त देवी के इस स्वरुप का ध्यान और अराधना करते हैं, उन्हें सांसारिक तथा आध्यात्मिक दोनो ही जगत में सफलता प्राप्त होती है । तंत्र शास्त्र के अनुयायी भी दस महाविद्याओं में प्रमुख, माँ त्रिपुरसुन्दरी का अखंड ध्यान तथा पूजा - आराधना करते हैं | पांच मुख होने के कारण इन्हें तंत्र शास्त्रों में ‘पंचवक्त्र’ अर्थात् पांच मुखों वाली कहा गया है। भगवती त्रिपुरसुंदरी सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है।

दस महाविद्याओं में एक हैं, माँ त्रिपुरसुन्दरी :

श्री देवीभागवतम पुराण में ऎसी कथा है कि देवी सती, जब पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में बिना निमंत्रण के जाने के लिए भगवान शिव की आज्ञा मांग रहीं थीं, तब भगवान शिव ने उनकी यह इच्छा अनसुनी कर दी | इससे रुष्ट होकर सती ने महाकाली का भयावह रूप ले लिया | भगवान शिव उनका यह रूप देखकर वहाँ से जाने लगे | तब महाकाली अपनी बात मनवाने के लिए दसों दिशाओं में दस अलग-अलग रूपों में उपस्थित होकर भगवान शिव का मार्ग रोकने लगीं | जगदम्बा के यही  दस लौकिक स्वरुप माँ काली, तारा देवी ,माँ छिन्नमस्ता, माता त्रिपुरसुन्दरी, माँ भुवनेश्वरी, देवी त्रिपुरभैरवी, माँ धूमावती, माता बगलामुखी, देवी मातंगी तथा माँ कमला; दस महाविद्या  के नाम से विख्यात हैं। शाक्त दर्शन, दस महाविद्याओं को भगवान विष्णु के दस अवतारों से जोड़ता है | ऎसी मान्यता है कि महाविद्याएँ वे स्रोत हैं, जिनसे भगवान विष्णु के दस अवतार उत्पन्न हुए थे। महाविद्याओं के ये दसों रूप चाहे वे उग्र हों अथवा सौम्य, जगत जननी के रूप में पूजे जाते हैं।

त्रिपुरसुन्दरी  को  'महात्रिपुरसुन्दरी', षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं।  दस महाविद्याओं में ये सबसे प्रमुख देवी हैं।

ललिता सहस्रनाम में है देवी के एक हज़ार नामों का वर्णन :

ललिता सहस्रनाम “ब्रह्माण्ड पुराण” से लिया गया है| इसमें  देवीशक्ति ललिता देवी, जिन्हें त्रिपुरसुन्दरी भी कहा जाता है, के एक हज़ार नामों का वर्णन मिलता है | ललिता सहस्रनाम में श्लोकों का क्रम इस प्रकार है कि वे देवी के अद्भुत मस्तक से लेकर सुन्दर चरणों तक का अनन्य वर्णन करते हैं।

सृष्टि, संरक्षण, संहार, तिरोधान और अनुग्रह; ईश्वर के ये पांच कृत्य हैं । देवी ललिता, सृष्टि का निर्माण करते समय ब्रह्म का; संरक्षण करते समय विष्णु का;  संहार करते समय रुद्र का; तिरोधान करते समय ईश्वर का तथा अनुग्रह या परम मोक्ष प्रदान करते समय सदाशिव की अभिव्यक्ति हैं |

ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईश्वर और सदाशिव को "पंच-ब्रह्म" और "पंच-प्रधान" के रूप में जाना जाता है। पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि देवी ललिता ने ही "पंच-ब्रह्म" को सृष्टि से संहार तक के पाँच कार्य निर्दिष्ट किए हैं | कभी-कभी, देवी इन "पंच-ब्रह्म" को निष्क्रिय कर के, जगत की सृष्टि से संहार तक के सभी पाँच कार्यों का  सञ्चालन स्वयं करती हैं।

भंडासुर के प्रकोप से सृष्टि की रक्षा :

ऎसी किम्वदंती है कि भगवान् शंकर ने जब कामदेव द्वारा अपना ध्यान भंग होने पर कामदेव को  भस्म कर दिया था, तब बहुत समय तक वह भस्म वहीं पड़ी रही और बाद  में गणेश जी ने कौतूहलवश उस भस्म से एक पुरुष की आकृति का निर्माण कर दिया  जो सजीव होकर भंडासुर नाम से जाना गया | उसने  भगवान शिव की कठोर तपस्या से ऐसा वरदान प्राप्त किया कि कोई भी देवता आदि उसका वध न कर पायें | भगवान शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर भंडासुर को  दिव्य अस्त्र- शस्त्र और कई राज्य भी वरदान स्वरुप भेंट किया | भंडासुर ने अपने अमर होने के दंभ में अनेक अनैतिक कार्य करने आरम्भ कर दिए और 105 ब्रह्माण्ड जीतकर उन सभी पर कुशासन करने लगा | देवलोक सहित समस्त सृष्टि के लोग उसके कृत्यों से त्राहि-त्राहि कर रहे थे | भंडासुर ने अहंकारवश भगवान गणेश और भगवान शिव का भी अपमान करना चाहा | सृष्टि को भंडासुर के अहंकारी और आसुरी कृत्यों से बचाने के लिए सभी देवताओं ने माँ त्रिपुरसुन्दरी का आवाहन किया | माँ त्रिपुरसुन्दरी ने भंडासुर को युद्ध में पराजित कर उसका संहार कर दिया और समस्त सृष्टि को उससे मुक्त कर दिया |

नवरात्रि में देवी की आराधना का विशेष महत्त्व :

माँ त्रिपुरसुंदरी, षोडशी या ललिता देवी के भक्त शक्ति पूजा के लिए विशेष, नौ दिनों की नवरात्रि में दुर्गा माता की भावपूर्ण पूजा-आराधना करते हैं | देवी भक्त नवरात्रि के प्रथम दिन से ही ललिता सहस्त्रनाम का पाठ और श्रवण करते हैं, जिसमे देवी त्रिपुरसुंदरी के एक हज़ार नामों की महिमा गायी जाती है | ऐसा विश्वास है कि नवरात्रि के दिनों में माँ जगदम्बा  के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान और आवाहन करने से भक्तों को, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है| भक्त साधना के भिन्न -भिन्न तरीकों से देवी का ध्यान, भजन-कीर्तन और पूजा-पाठ करते हैं| नवरात्रि के नौ दिनों में साधक मौन और उपवास का पालन करते हुए अखंड साधना करते हैं|

नवरात्रि 2022 में आइये , स्वास्थ्य और अध्यात्म की यात्रा में, एक कदम और आगे बढ़ें | सीखें सुदर्शन क्रिया |

सुदर्शन क्रिया से तन-मन को रखें हमेशा स्वस्थ और खुश !

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