जीवन की बूँद

साबुन उसकी दृष्टि को धुँधला बना देता है क्योंकि वह एक खोखले जंग खाए हुए पाइप से नीचे बहता है जो उसकी शुद्धता के विपरीत कणों को इकट्ठा करता है और उसे भारी बनाता है। वह अपने जैसे लाखों लोगों की बनावट को महसूस करती है, जो मोटे धातु से होकर एक गहरे अंधेरे गड्ढे में निकल जाता है। छोटे-छोटे पत्थरों का ढेर और रेत के महीन कण मार्ग में उससे मिलते हैं। उसकी गति धीमी हो गई, उसका प्रवाह निर्धारित हो गया, वह दरारों के माध्यम से अपना रास्ता बना लेता है और एक मुक्त गिरावट में गिर जाता है। वह हँसता है। अभी के लिए, वह देख सकता है, उसकी दृष्टि अब धुंधली नहीं है, भारीपन चला गया है, वह फिर से शुद्ध है। जल्द ही, वह एक ठंडे स्टील पाइप के माध्यम से उसे ऊपर खींचता हुआ एक निर्वात महसूस करता है और वह बाहर एक गिलास में निकल जाता है। ताजी हवा का स्पर्श अच्छा लगता है। क्षण भर बाद वह एक छोटे लड़के के चेहरे को मुस्कुराते हुए देखता है जब वह  लड़का अपने होठों पर गिलास लगाता है, तो वह खुशी-खुशी उस लड़के की जरूरत के लिए आत्मसमर्पण कर देता है, और एक पूर्ण आह के साथ अपना गला दबा देता है और उस छोटे  लड़के की प्यास बुझाता है, पानी सचमुच जीवन है!

जल ही जीवन है। भारत, जो तीन तरफ़ पानी से घिरा है, इसके विपरीत करोड़ों लोगों को शुद्ध जल उपलब्ध नहीं है। जल की अत्यधिक बर्बादी है, इस बात से बेख़बर कि यह कितनी जिंदगियों की क़ीमत पर है! 

कर्नाटक के लक्ष्मीपुरा गाँव के निवासियों के पास बताने को एक कहानी है। यह गाँव मुख्यतः पानी की बर्बादी के कारण ही पानी की कमी और ग्रीष्म ऋतु में सूखा झेलता रहा है पर अब और नहीं । आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा इस गाँव के साथ-साथ कर्नाटक के विभिन्न भागों में जल सरंक्षण परियोजनाएँ आरम्भ की गई हैं जिनके उत्साहवर्धक परिणाम मिल रहे हैं। नालों को अपशिष्ट जल से मुक्त किया गया है और अब इनको वर्षा का पानी इकट्ठा करने के लिए उपयोग किया जाता है। जल को प्राकृतिक फ़िल्टरों द्वारा और शुद्ध भी किया जाता है। मानसून ऋतु में इन बहते हुए नालों का जल छोटे तालाबों में इकट्ठा किया जाता है और फिर उस जल को फ़िल्टर करने के उपरांत बड़े तालाबों में जमा किया जाता है । इसके पश्चात् इस जल को चैनल द्वारा गाँवों के बोरवेल तक पहुँचाया जाता है ताकि ग्रामवासियों को शुद्ध पेय जल उपलब्ध हो सके।

ग्रामवासियों का सरल मंत्र है ‘जल की बर्बादी नहीं’! उनको इस प्रकार से शिक्षित किया गया है और वे जल संरक्षण के महत्व के प्रति जागरूक हैं। ग्रामवासियों ने यह शपथ भी ली है कि शुद्ध जल का उपयोग गाड़ियाँ और कपड़े धोने और पशुओं को नहलाने जैसे कार्यों में नहीं करेंगे । 

यह उत्साह वर्धक है कि लोग जागरूक हैं और पानी बचाने के लिए उपाय कर रहे हैं। यह जान लेना कि हर बूँद बहुमूल्य हैऔर जीवन को आगे बढ़ाने में उपयोगी है, हर घूँट के लिए आभारी होने का पर्याप्त कारण है। यह आभार की भावना, जो वह नन्हा बालक, उसका परिवार और अन्य ग्रामवासी शुद्ध जल की हर घूँट के साथ महसूस करते हैं, सबके साथ साझा करने लायक़ ख़ुशी है । 

 यह सब करने के लिए उन्हें इतना समय क्यों लगा? यहाँ पर आध्यात्मिक प्रक्रियाएँ सहायता करती हैं। अध्यात्म ही टीम भावना, ज़िम्मेदारी की भावना और अपनेपन की भावना का सिंचन करता है। यह प्रकृति के प्रति और एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाता है और एक दूसरे की देखभाल करने और एक दूसरे के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित करता है। सामूहिक ध्यान और सत्संग के कुछ ही सत्र, सामूहिक प्रगति और आपसी सद्भाव  की भावना स्थापित करने के लिए पर्याप्त हैं। ऐसा एक बार नहीं बार-बार, गाँव दर गाँव, चुनौती दर चुनौती देखा परखा गया है और एक के बाद एक सफलता मिली है । 

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लेखक : Eben Felix , ग्राफ़िक्स : निलादरी दत्ता