यमुना अगर इतनी नाजुक स्थिति में थी तो अधिकारियों ने विश्व सांस्कृतिक महोत्सव (WCF) को अनुमति क्यों दे दी ? | Why did the authorities give permission for WCF if Yamuna was so fragile?

भारत (India)
18th of अप्रैल 2017

सभी ईमानदार पर्यावरणविदों को मामले का अध्ययन करने और सच्चाई का अनावरण करने के लिए आमंत्रित करें।

विश्व सांस्कृतिक उत्सव के संदर्भ में हाल में दी गई एनजीटी की रिपोर्ट पर श्री श्री रवि शंकर जी का वक्तव्य -

एनजीटी अपने देरी से न्याय देने के कलंक को पोषित कर रही है और आर्ट ऑफ लिविंग जैसी कानून सम्मत चलने वाली संस्था का नाम मीडिया में लाकर बदनाम कर रही है, इस कलंक से वह कभी ऊपर नहीं उठ सकते। आर्ट ऑफ लिविंग ने कार्यक्रम हेतु एनजीटी सहित तमाम संबंधित विभागों से अनुमति प्राप्त की थी। एनजीटी के पास अनुमोदन की फाईल दो माह से थी और वे चाहते तो प्रारंभ में इस कार्यक्रम को रोक सकते थे। पहले एनजीटी कार्यक्रम की अनुमति देती है और बाद में उसी पर जुर्माना लगा देती है यह तो कहीं से भी न्यायसंगत नहीं कहलाएगा।

अब यदि जुर्माना लगाया जाना चाहिए तो अनुमति देने के एवज में स्वयं एनजीटी या राज्य सरकार या केन्द्र सरकार पर लगाया जाना चाहिये। यदि यमुना इतनी शुद्ध और संवेदनशील थी तो कार्यक्रम की शुरूवात में ही आयोजन के लिए रोक दिया जाना था। ऐतिहासिक विश्व सांस्कृतिक उत्सव - जिसे सभी दूर वैश्विक स्तर पर सराहा गया, को अपराध की श्रेणी में रखा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। विदित है कि इस कार्यक्रम को विश्व भर के 18 करोड लोगों द्वारा देखा गया और कार्यक्रम स्थल पर भी लाखों लोग सम्मिलित हुए। अपने सात एकड के मंच जिसे बगैर किसी बुनियाद के तैयार किया गया था, (जो अपने आप में एक आश्चर्य है), इस कार्यक्रम (महोत्सव) द्वारा किसी भी प्रकार से जमीन, पानी या हवा को प्रदूषित नहीं किया गया। सदियों से सांस्कृतिक कार्यक्रम नदियों के किनारे होते आए हैं।

इसके पीछे पूरा मंतव्य यह था कि नदियों को कैसे बचाया जाय। यहॉं पर यह बताना लाजमी होगा कि आर्ट ऑफ लिविंग ने देश भर में 27 नदियों का जिर्णांद्धार किया है, 71 मिलियन पेड लगाए हैं और कई तालाबों को पुर्नजीवित किया है। वास्तव में यह बहुत बडा मजाक है कि उसी जगह पर स्थायी निर्माण हो रहे हैं, कई टन मलबा पडा है और सारे विशेषज्ञ चुप्पी साधे बैठे हैं। यह वस्तुतः दुर्भावनापूर्ण किया गया कृत्य लगता है। आर्ट ऑफ लिविंग ने अपना विरोध आवेदन के माध्यम से दर्ज किया है लेकिन याचिकाकर्ता से निकटता के चलते आज तक विरोध का जवाब नहीं दिया गया है।

जो सेवा कर रहे हैं उन्हे विनाशक बताया जा रहा है और न्याय के स्थान पर ईमानदारी पर जुर्माना लगाया जा रहा है। यह तो तकनीक का शुक्र है कि आर्ट ऑफ लिविंग पर लगाए गए सारे आक्षेप गूगल-अर्थ के माध्यम से पिछले दस साल के आकडों के आधार पर निराधार साबित हुए हैं। मैं सभी पर्यावरणविदों को आमंत्रित करता हूॅं कि वे आएॅं और इसका संपूर्ण अध्ययन करें और सत्य को सबके समक्ष प्रस्तुत करें।

आर्ट ऑफ लिविंग की विधि विशेषज्ञ टीम का वक्तव्य -  

एनजीटी द्वारा गठित की गई तथाकथित विशेषज्ञों की समिति की रिपोर्ट से आर्ट ऑफ लिविंग आहत हुआ है, उसकी प्रतिष्ठा धुमिल हुई है। एनजीटी का कहना है कि विश्व सांस्कृतिक उत्सव से यमुना नदी और उसके बाढ क्षेत्र के पर्यावरण को स्थायी नुकसान पहुॅंचा है। समिति के विषेषज्ञों द्वारा पक्षपातपूर्ण और गैरजिम्मेदाराना तरीके से अपनी गतिविधियों को संचालित करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

सर्वप्रथम उन्हौने हुए नुकसान के लिए निराधार 120 करोड का जुर्माना संस्था पर तय किया। कोई भी ईमानदार और जिम्मेदार समिति ऐसा नहीं करेगी और वह भी सिर्फ उत्सव के बाद हुए स्वाभाविक कचरे को देखकर।

इसके बाद याचिकाकर्ता के लिए पक्षपात करते हुए श्री सी.आर.बाबू ने मीडिया में बगैर किसी वैज्ञानिक तथ्य या आधार लेकर अपना साक्षात्कार दिया और उसमें बेबुनियाद आरोप लगाए। एनजीटी के द्वारा गठित एक निष्पक्ष और स्वतंत्र समिति क्या ऐसा साक्षात्कार दे सकती है? इससे बडा और क्या पक्षपात का उदाहरण दिया जा सकता है।
 
उत्सव हो जाने के उपरांत यही एनजीटी एक और रिपोर्ट देती है जिसमें कोई भी पुख्ता वैज्ञानिक तथ्य नहीं थे और यह रिपोर्ट भी पूर्ववत ही थी। इसमें वे कहते हैं कि पर्यावरण का नुकसान हुआ है। समिति ने जानबुझकर नुकसान की मात्रा को रिपोर्ट से हटा दिया गया और इस मुद्दे को अस्पष्ट छोडा गया है। कोई भी इस बात से चालाकी का अंदाजा निकाल सकता है कि पहले समिति केवल देखकर 120 करोड का जुर्माना आरोपित कर रही थी और एक परीक्षा के बाद कोई भी आंकडे देने में हिचक रही थी। यह स्पष्ट था कि जमीनी हकीकत किसी भी आरोप को साबित नहीं कर रही थी और समिति कुछ कहने का आत्मविश्वास पैदा नही कर पा रही थी।

जब एनजीटी को नुकसान के सही आंकलन के लिए कहा गया तो हाल ही में उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि हुए नुकसान के लिए 13 करोड का जुर्माना लगाना उचित होगा। इसमें यह भी कहा गया है कि पूरे क्षेत्र को पूर्नजीवित करने के लिए 42 करोड रूपए खर्च होंगे। आगे रिपोर्ट में कहा गया है कि दी गई राशि की गणना अनुमानित है और इसे निश्चित करने के लिए अध्ययन की आवश्यकता होगी। इसकी गणना के समय भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं लिया गया। सबसे बडा पक्ष तो यह है कि जुर्माने के लिए भी कोई आधार नहीं था!!  कोई भी श्रेष्ठ विशेषज्ञ इस तरह की आधारहीन बातों को न्यापूर्ण नहीं मानेगा।
क्या कोई भी विशेषज्ञ समिति इस तरह से अस्पष्ट और अस्थिर कैसे हो सकती है? यहॉं पर वास्तव में समिति पूर्व में किए गए गैरजिम्मेदाराना दावों को पोषित करने के लिए यह सब कर रही है। विदित है कि इन दावों के कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किए गए थे। अब चूंकि वैज्ञानिक आंकडे उनके दावों को सहयोग नहीं कर रहे हैं तो समिति अपनी इज्जत बचाने में लग गई है।

समिति के इस तरह के गैरजिम्मेदाराना और पक्षपातपूर्ण व्यवहार को देखते हुए आर्ट ऑफ लिविंग ने एनजीटी से स्वतंत्र और निष्पक्ष विशेषज्ञों की समिति गठन करने के लिए गुजारिश की थी। इस आवेदन को अभी तक सुना ही नही गया है। आर्ट ऑफ लिविंग ने समिति के पक्षों को पूर्नमूल्यांकन के लिए भी आवेदन किया था। जमीन का कानून भी कहता है कि एक विशेषज्ञ की रिपोर्ट को तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता है जब तक कि विशेषज्ञ स्वयं पूर्नपरीक्षण के लिए तैयारा न हो। इसकी भी अभी तक सुनवाई नहीं हुई है। प्राथमिकता के आधार पर आवेदनों की सुनवाई की जाना एनजीटी के नियमों में शायद नही है। सुनवाई तो दूर उससे पहले ही मीडिया में आर्ट ऑफ लिविंग को बदनाम करने के लिए अपना पक्ष प्रस्तुत कर दिया जाता है और संस्था पर जुर्माना बगैर उसकी सुने लगा दिया जाता है।

आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा उत्सव के आयोजन से पूर्व सभी आवश्यक अनुमतियॉं ली जा चुकी थी। नदी के किनारे इस उत्सव को करने के पीछे  मंतव्य यह था कि नदी के बारे में जागरूकता फैलाई जाए और उसमें हो रहे प्रदुषण के विषय में सचेत किया जाय।
दशकों से यहॉं तक कि आज भी यमुना बहुत ज्यादा प्रदूषित है और उसमें मलबा भी शामिल है। कथित विशेषज्ञों की टीम को जो एक उत्सव के लिए आर्ट ऑफ लिविंग की आलोचना कर रही है उन्हे इस सत्य को भी स्वीकार कर लेना चाहिए और स्वयं के गिरेबान में झांक कर भी देख लेना चाहिए।

यह तो तकनीक का शुक्र है कि आर्ट ऑफ लिविंग पर लगाए गए सारे आक्षेप गूगल अर्थ के माध्यम से पिछले दस साल के आकडों के आधार पर निराधार साबित हुए हैं।