ध्यान (meditation)

ध्यान : प्रश्नोत्तरी माला

प्रश्न  ध्यान के समय मस्तिष्क में चल रहे विचारों के शोर को कैसे शांत करें ?

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर: इसके लिए तुम कई ऊपाय कर सकते हो| सबसे पहला ऊपाय तो यह है कि तुम इस शोरगुल से लड़ो नहीं, इसे स्वीकार करो| मन  को शांत करने के लिए तुम मन में चल रहे विचारों का प्रतिरोध करते हो , जितना तुम उनसे छुटकारा पाने का प्रयास करते हो , वो उतनी ही तीव्रता से तुम्हे जकड़ लेते हैं| चेतना अथवा मन का नियम यह है कि विचारों का तुम जितना प्रतिरोध करते हो उतने ही अधिक विचार पनपते रहेंगे| इन विचारों को रोकने का प्रयास मत करो, इन्हें जाने दो| 

ध्यान में सरलता पूर्वक उतरने के लिए ये पांच विधियां सहायक हैं | गहरी सांस लेना और साँसों  के आवागमन पर ध्यान ले जाकर तुम विचारों से मुक्त हो सकते हो| सम्यक सात्विक भोजन, उचित व्यायाम, बैठने की सुख पूर्वक स्थिति, शुद्ध भावनाएं व सही समझ – ये सब तुम्हारे ध्यान में  सहायक होंगी.

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, ध्यान करते समय मैं सजग था पर मुझे मेरे शरीर के प्रति कोई संवेदना नहीं थी| केवल “ मैं हूँ “ की अनुभूति थी| उसके बाद मुझे अचानक एक झटका सा लगा और मैं अपनी चेतना में लौट आया | यह सब क्या हुआ था ?

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर: यह अच्छा है. तुम्हे अपने आत्म स्वरूप की एक झलक प्राप्त हुई| उस चैतन्य स्वरुप की, जो तुम हो| ध्यान में ऐसा होना एक स्वाभाविक व उतम स्थिति है पर इस अनुभव को, कल फिर से पाने की चेष्टा मत करना | इसकी पुनरावृति नहीं  भी हो सकती है| दिन प्रतिदिन तुम्हे नए-नए अनुभव होते रहेंगे, पर इन अनुभवों को पकड़ कर मत बैठो| तुम अपने अनुभवों से कहीं अधिक विशाल हो|

प्रश्न :  ध्यान करते समय मेरा मन तो शांत हो गया पर मैं अपने मन के पार जाने में असमर्थ रहा; क्या मैं  कठिन प्रयास कर रहा हूँ ?

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर: तुम्हे मन के पार जाने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए| तुम्हारे हित में यही  है कि तुम कोई चेष्टा न करो औए सहज रहो| ठीक है ??

जैसे तुम मालिश करवाने की टेबल पर लेटे हो, उस समय तुम क्या करते हो ? तुम कुछ नहीं करते और मालिश वाले (मर्दक) को उसका काम करने देते हो| इसी प्रकार ध्यान में प्रकृति को अपना काम करने दो| चेतना स्वयं अपना ध्यान रखेगी|

प्रश्न : कुछ दिनों के ध्यान के बाद , किसी घटना पर मेरी प्रतिक्रिया स्वरुप मन में उत्पन्न हो रहे  क्रोध व प्रतिरक्षात्मक रवैये के प्रति मैं सजग हो रहा हूँ. इसमें बदलाव लाने के लिए क्या करूं ? 

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर: प्रतिक्रिया के जिस तरीके को तुम अपना मान रहे हो, उस पर अपने स्वामित्व को हटा लो| जब तुम यह मानने लगते हो कि “ मैं क्रोधी हूँ, प्रतिरक्षात्मक हूँ “ तब तुम अपने भूतकाल या उस समय अपनाये गए तरीकों से चिपके रहते हो| तुम उन्हें सर्वथा त्याग दो| वे भूतकाल में थे, कुछ समय के लिए तम्हारे चेतन आकाश में रहे थे. तो क्या हुआ  ? वे अब नहीं हैं |

कभी-कभी तुम आकाश में घने काले बादल देखते हो, आकाश उन्हें अपना अंग  स्वीकार नहीं करता| वे आते हैं और चले जाते हैं| उसी तरह तुम्हारे मन में  कभी सुखकर कभी असुखकर भावनाएं उठती हैं; तुम उन सब को छोड़ दो , साक्षी भाव से आने और जाने दो|

प्रश्न : मैंने सुना है कुछ सालों के ध्यान के अभ्यास से साधक का पूरा जीवन ही ध्यान-मय हो जाता है, कृपया इसकी व्याख्या करें.

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर: हाँ , ध्यान के दीर्घकालीन  अभ्यास से तुम्हारी आंतरिक शांति बनी रहती है| चाहे तुम कुछ भी करते रहो, चलते हुए , बोलते हुए, खाते हुए, बातचीत करते हुए, समाचार देखते हुए, हर गतिविधि में सदैव प्रशांति बनी रहती है| यह तुम्हारा स्वभाव बन जाता है जो कभी नहीं छूटता|

पर ‘यह स्थिति मुझे कब प्राप्त होगी ?’ इसकी आतुरता मत रखो| यह कभी भी घट सकती  है| मन में ऐसा भाव रखना चाहिए कि कोई परवाह नहीं, जब होगी तब हो जाएगी|

कबीर भारत के मध्यकालीन युग के एक संत थे| उनका एक बहुत सुन्दर दोहा है: मैं ईश्वर की खोज में  भटकता रहा पर ईश्वर मुझे नहीं मिले| पर जैसे ही मैंने दौड़ना बंद किया, मेरा मन शांत और निर्मल हो गया और  अब ईश्वर स्वयं मेरे पीछे दौड़ने लगे और कबीर कबीर कह कर पुकारने लगे.

कबिरा मन निर्मल भयो जैसे गंगा नीर

पाछे-पाछे हरी फिरे कहत कबीर-कबीर

यह समझो कि गहन विश्रांति की स्थिति को, बिना किसी प्रयत्न के, कैसे पाया जाये ? प्रयत्न  से हम सांसारिक वस्तुओं को पा सकते हैं| और सांसारिक उपलब्धियां अति सीमित हैं | आध्यात्म जगत में कुछ प्राप्त करने के लिए, कोई उच्च उपलब्धि के लिए प्रयत्न  की आवश्यकता नहीं| जब तुम सारे प्रयास छोड़ देते हो, तब तुम्हे कुछ बड़ी उपलब्धि प्राप्त होती है. सांसारिक जगत सम्पूर्ण सृष्टि का मात्र 10 प्रतिशत भाग है| 90% अध्यात्मिक जगत है| प्रयत्न से तुम प्रेम उत्पन्न नहीं कर सकते|  तुम प्रयत्न से अपने भीतर करुणा का भाव नहीं जगा सकते| क्या तुम कह सकते हो कि मैं स्वयं को करुणावान बनाने की कड़ी कोशिश कर रहा हूँ ?

कोशिश करना ही तुम्हारे मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है | विश्राम करो, तुम करुणावान हो जाओगे| खुश रहने के लिये तुम जो प्रयास करते हो, वह  प्रयास ही सबसे बड़ी बाधा है| प्रयास सांसारिक जगत की भाषा है| बिना प्रयत्न के तुम धन नहीं कमा सकते, विद्या नहीं पा सकते, परीक्षा में अच्छे अंक नहीं ला सकते| बिना प्रयास के तुम घर का निर्माण नही कर सकते| चुपचाप बैठ कर सोचने मात्र से यह सब नहीं हो सकता|

पर आध्यात्मिक जगत इसके विपरीत है. यहाँ कुछ क्षणों के लिए शांत-चित्त होकर बैठना और कोई प्रयास न करना ही आवश्यक है|

मैं जानता हूँ , तुम्हे कुछ न करते हुए, शांत-चित्त होकर बैठना बड़ा कठिन लग रहा होगा| कुछ दिन यहाँ आश्रम में रहो| तुम पाओगे कि यह इतना कठिन नहीं है, यह अत्यंत सरल है|

(यह प्रश्नोत्तर ध्यान के रहस्य पर गुरुदेव द्वारा 20 अप्रैल 2012 को कैलिफोर्निया में दी गयी वार्ताओं की श्रृंखला पर आधारित है|)

अब ध्यान करना है बहुत आसान आज ही सीखें !

हमारे ध्यान कार्यक्रम सहज समाधि ध्यान सहज . आनंददायक . प्रभावशाली
अब ध्यान करना है बहुत आसान ! आज ही सीखें !