ध्यान (meditation)

ध्वनि से मौन की ओर.

एक संपूर्ण और खुशहाल जीवन जीने के लिए अपनी दिनचर्या में ध्यान-साधना को सम्मलित करना सर्वोत्तम, प्राकृतिक एवं सबसे प्रभावी उपाय है| आत्म-अनुसंधान भी यहीं से प्रारम्भ होता है|  इस प्राचीन विषय को समझाने हेतु गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी ने समय-समय पर अनेकों प्रश्नो के उत्तर दिए हैं, जिनमें से कुछ उत्तर यहां संकलित किये गए हैं| 

प्रश्न १ : ध्यान क्या है?

गुरुदेव: बहुत से लोग सोचते हैं कि ध्यान का अर्थ है गहनता से विचार करना या मन को गंभीरता से एकत्रित करना। ऐसा भी माना जाता है कि ध्यान के लिए अत्याधिक प्रयास की आवश्यकता होती है; यह धारणा गलत है| ध्यान एकाग्रता के बिलकुल विपरीत है |  यदि आपको कार चला कर कहीं दूर जाना हो तो अवश्य आपको तल्लीन होकर कार चलाना होगा| किन्तु यदि आप घर पर सिर्फ विश्राम करते हैं तब आपको तल्लीन होने की कोई आवश्यकता नहीं और न ही किसी प्रकार का प्रयास करने की|

ध्यान एक गहरे विश्राम के स्वरुप है. इसमें गहनता का कोई स्थान नहीं। इसलिए, यदि ध्यान के समय आपके मन में विचार उठें तो हमें उन विचारों को दूर भगाने का प्रयास करने की कोई आवश्यकता नहीं| हम जितना भी विचारों को दूर भगाने का प्रयास करेंगें, वे हमें उतने ही अधिक विचलित करेंगे | किसी भी विचार से छुटकारा पाना आसान नहीं होता | वो और भी अधिक बलवान होकर वापस आते हैं|

इसलिये हम एक युक्ति का प्रयोग करते हैं; यदि बुरे विचार मन में उठते हैं तो हम उनको गले लगाते हैं, उनसे हाथ मिलाते हैं| तब वे गायब हो जाते हैं| यदि अच्छे विचार आते हैं तो हम उन्हें भी गले मिलते हैं और इस प्रकार वे  शांत हो जाते हैं| हम किसी भी विचार को रोकने का प्रयास नहीं करते, ऐसा करना व्यर्थ है|

प्रश्न २:  एक प्रभावी ध्यान करने के लिए आप क्या नियम एवं उपाय बताना चाहेंगे?

गुरुदेव: ध्यान करने के तीन स्वर्णिम नियम हैं| पहला है - "मुझे कुछ नहीं चाहिए|"  यदि आप कहते हैं कि "मुझे पानी पीना है" या "मुझे अपनी स्थिति बदलनी है", तब कोई ध्यान नहीं हो सकता| जब आप को कुछ भी नहीं चाहिए होता, तब आप कुछ भी नहीं करते|

दूसरा नियम है : "मैं कुछ नहीं करना है"| आप केवल सांस लेते हैं| ध्यान के समय यह भी सोचने का प्रयास न करें कि मुझे कुछ नहीं चाहिए और मैं कुछ नहीं करता।  केवल एक प्रयास-हीन धारणामात्र ही काफी है|

तीसरा नियम इनसे भी अधिक महत्वपूर्ण है| यह है "मैं  कुछ भी नहीं हूँ"|

ध्यान करते समय यदि आपके मन में विचार उठता है कि आप बहुत बुद्धिमान हैं, तो आप किसी भी हालत में ध्यान नहीं कर सकते| इसी तरह यदि आप सोचते हैं कि आप मूर्ख हैं तब भी आप ध्यान नहीं कर सकते| आप गरीब हैं, अमीर हैं, ये सब विचार आपके ध्यान में बाधक हैं| तो, आप क्या हैं? ‘कुछ नहीं’ - ‘मैं कुछभी  नहीं हूँ’| मुझे कुछ नहीं चाहिए| मुझे कुछ नहीं करना है|

ध्यान के पश्चात, यह आपकी इच्छा है, आप चाहें तो फिर से कुछ बन सकते हैं| किन्तु ध्यान के समय यदि आप सोचेंगे हैं कि आप कोई महान व्यक्ति हैं या कोई फालतू व्यक्ति हैं, तो यह निश्चित है कि आप ध्यान की गहराई में नहीं उतर सकते| अपनी अंतरात्मा में स्थित होने के लिए; जिससे कि हम सब बने हैं, यह प्रथम चरण सबसे आवश्यक है.

यह ध्वनि से मौन तक की यात्रा है|   

प्रश्न ३: मैं ध्यान नहीं कर पाती हूँ. कृपया मुझे कुछ सुझाव दें.

गुरुदेव: जब आप टेलीविजन देखती हैं , तब आप ध्यान में होती हैं| यह संभव नहीं है कि मन ध्यान में न लगे| जब भी आपका मन किसी ऐसे विषय पर जाकर स्थिर हो जाता है जो उसे पसंद है, तभी ध्यान की स्थिति होती है| आपको शाब्दिक ध्यान के परे नि:शब्द ध्यान की ओर जाना है| हम जीवन को ज्ञान से अलग करके जीते हैं, हमे जीवन को ऐसे जीना चाहिए जैसे कि ज्ञान ही जीवन है और जीवन ही ज्ञान है| जैसे जीवन में सारे सम्बन्ध हमारे अपने बनाये हुए हैं, उसी प्रकार ज्ञान से भी सम्बन्ध बनाएं|

"Question Basket" नामक पुस्तक में प्रथम बार प्रकाशित।

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अनुवादक : अजय रस्तोगी, मुंबई

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