ध्यान (meditation)

अपने जीवन के कठिन समय का सामना कैसे करें

कभी कभी हमारे या किसी और के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ घटित होती है, जो हम कभी सोच भी नहीं सकते हैं। जब हम खुदको या किसी और को ऐसी आपदाओं को फेस करते हुए देखते है तब हम अंदर से हिल जाते है. क्यूंकि कुछ घटनाएँ  सामान्य नहीं होती और जिस इंसान पर वो बीत रही होती है वहीं उसका दर्द जानता है।  

आपदा में होने वाले विनाश का सामना करना, किसी भी व्यक्ति के लिए सरल नहीं है। हम आपदा का सामना कैसे करते हैं, यह एक व्यक्तिगत चुनाव होता है। अभी हाल ही में आई कई आपदाओं और मानव निर्मित त्रासदियों के पश्चात, यह पूछना स्वाभाविक है कि 'यह क्यों हुआ' या 'अब आगे क्या होगा?' कई बार परिस्थितियां आपके नियंत्रण से पूरी तरह से बाहर और बिल्कुल अराजकता की स्थिति में होती हैं और आपको अपनी क्षमता के अनुसार परिस्थिति को बेहतर करना और आगे बढ़ना होता है।

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हाल ही में, मेरे घर के पास के जंगल में आग लग गई थी। हवा में घना धुआँ भर गया था। कई हफ्तों तक बारिश नहीं हुई। आसपास के कई कस्बों को खाली करने के आदेश दे दिए गए।एैसी दुखद स्थिति में, कई लोगों ने अपनी जानें और घर गंवाए या फिर रिफ्यूजी कैम्प्स में विस्थापित हो गए।

इस अनहोनी से गुज़रते हुए मैंने पाया कि भय, अनिश्चितता और दुख के समय में ज़िन्दगी के यह चार सुझाव बहुत लाभदायक हैं।

१. तैयारी:

  • जगह खाली कराए जाने की स्थिति में आपदा से निपटने की एक योजना बना कर रखें।अपने परिवार के सदस्यों और मित्रों से मिलने की जगह और संवाद करने की योजना के बारे में विचार - विमर्श करें।
  • अक्षय मात्रा में भोज्य पदार्थ, पानी की बोतलों की पर्याप्त आपूर्ति करें और जीवन रक्षक दवाएँ हाथों में रखें।
  • अग्रिम रूप से, एक सूटकेस पैक करके रखें ( उसमें ज़रूरी चीजें, जैसे - फोटोग्राफ, विरासत के काग़ज़, कीमती सामान, महत्वपूर्ण काग़ज़ आदि रखें ) और उसे एक सुरक्षित स्थान पर रखें, जहां आप उसे आसानी से लेकर चले जाएं।
  • तकनीकी उपकरणों की मदद से महत्वपूर्ण जानकारी को सुरक्षित कर लें, ताकि बाद में उसे पुनः प्राप्त किया जा सके।
  • महत्वपूर्ण कार्यों को अभी करने का प्रयास करें और उन्हें कल पर ना टालें।

२. सजगता:

  • आपातकाल के दौरान, स्वयं पर और अपने प्रियजनों को सुरक्षित करने पर पूरा ध्यान केंद्रित करें।
  •  यदि आप कर सकते हैं, तो दूसरों की सुरक्षा करने में भी मदद करें।
  •  स्वयं जिम्मेदारी लेकर सोचें कि क्या करना चाहिए और क्रमबद्ध तरीके से परिस्थिति का सामना करें।

३. शांति:

  • कुछ गहरी साँसें लें। सजगता पूर्वक सांस लेने से आपका तंत्र शांत हो जाता है और आपको अधिक प्रभावशाली तरीके से कार्य करने में सक्षम बनाता है।
  • ऐसी कई औपचारिक श्वसन तकनीकें हैं, जिनका अभ्यास आप सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के पश्चात कर सकते हैं।
  • सकारात्मक रूप से स्वयं को यह याद दिलाएं कि जिन कार्यों को करना आवश्यक है, उन कार्यों को आप कर सकते हैं। आप इस बात को ज़ोर से बोलकर भी स्वयं को बता सकते हैं।
  • जब एक बार आप सुरक्षित हो जाएं, तो अपनी श्वास पर ध्यान दें, ध्यान करें और अपने ऊपर होने वाली कृपा को महसूस करें।आप जीवित बच गए हैं।
  • अपनी योग्यता और मानवता में विश्वास रखें। स्वयं और अन्य लोगों में विश्वास करना, पुनर्निर्माण और स्वस्थ हो जाने की ओर पहला कदम है।

४. एकजुटता:

  • हम सभी को समुदाय की आवश्यकता है। संकट के समय में, सब लोग एक साथ आएं।
  • मदद लें और मानसिक आघात से राहत देने वाले संगठनों से संपर्क करने में ना हिचकिचाएं।
  • दूसरों या स्वयं को दोष ना दें। दोषारोपण करने से आपको कुछ नहीं मिलेगा।
  • यह जान लीजिए कि आप अकेले नहीं हैं।आपदा का सामना करने के लिए आवश्यक सहायता आपको प्राप्त हो जाएगी।
  • एक दूसरे से संवाद करें। एक दूसरे को सहारा दें। खुलेपन से व्यवहार करें और अपनी चीज़ों को दूसरों से बांटें।
  • चाहे आपदा आने से पहले की स्थिति हो या आपदा आने के पश्चात, एक दूसरे की मदद करें। दूसरों की मदद करने से आपको आगे बढ़ने और स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

 

अनियोजित घटना बस हो जाती है। घटनाएँ होती रहती हैं। यह जान लीजिए कि आप भूतकाल में भी घटनाओं से उबर गए थे और आप फिर से ऐसा कर सकते हैं। जीवन अप्रत्याशित है। जीवन सुंदर भी है।आपके पास जो भी है, उसके प्रति धन्यवादी रहें और स्वयं पर विश्वास रखें, जिसका निर्माण आप फिर से कर सकते हैं।

अपने चेहरे की मुस्कान को वापस लाएं, चाहे वह छोटी सी ही क्यों ना हो। परिस्थितियां बेहतर हो जाएंगी। एक सकारात्मक मानसिकता आपको आगे बढ़ने में मदद करती है।अपने साथ एक वादा करें और अपने आसपास के लोगों के साथ तैयार रहें, सजग रहें, शांत रहें और एकसाथ आएं। यदि आपदाएँ प्रहार करती हैं, तो अपनी आंतरिक शक्ति पर ध्यान केंद्रित करें और जान लें कि आप अकेले नहीं हैं।

समय बीत गया और आग अभी भी जल रही है। आज, आकाश धूसर रंग का और बादलों से भरा हुआ था। मैंने ऊपर देखा और धुँध को महसूस किया। आखिरकार बारिश होने लगी। हमारे बगीचे में गुलाब के फूलों पर बारिश की कोमल बूंदें बहुत सुंदर लग रही थीं। मेरे पास कुछ कहने के लिए शब्द ही नहीं थे।अपने चेहरे पर बारिश की बूंदों और इस आशा को महसूस करके कि अब आग बुझ जाएगी, बहुत राहत मिली। मनुष्य की आत्मा आपदा का सामना कर सकती है और फिर से फल - फूल सकती है।

शीला रामकृष्णन द्वारा लिखित 

शीला बायोटेक इंडस्ट्री में काम करती हैं और आर्ट ऑफ लिविंग संस्था में हैप्पीनेस प्रोग्राम शिक्षक हैं

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