ज्ञान के लेख (Wisdom)

प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार ग्रहण काल के दौरान क्या करें | What to do during eclipse according to Indian tradition

ग्रहण की पौराणिक कहानी और रहस्य

पौराणिक कथाओं के अनुसार बलवान देव और असुरों ने दूध के समुद्र का मंथन किया था जिससे भगवान विष्णु जी धनवंतरी के रूप में अमृत के साथ निकले थे। अमृत के लिए देव और असुरों के बीच लड़ाई छिड़ गयी। भगवान विष्णु जी ने सुंदर मोहिनी का रूप धारण कर सारा अमृत देवों में समानता से बांट दिया। स्वरभानू नाम के एक असूर ने मोहिनी की यह चतुराई पहचान ली। वह देव का रूप लेकर सूर्य और चंद्र के बीच जाकर बैठ गया। इससे पहले कि सूर्य और चंद्र उसे पहचान लेते, स्वरभानू अमृत प्राशन कर चुका था। भगवान विष्णु जी उसे मार तो नहीं पाए पर उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उसके शरीर के दो टुकड़े कर दिए - सिर बना राहू और धड़ बना केतु। सूर्य और चंद्र को निगल कर वह अपना बदला लेता रहता है।

"हमारी बहुत-सी पौराणिक कथाएँ राहू केतु के बारे में हैं, पर दरअसल वह गणितीय गणित बिंदु हैं जो बताती हैं ग्रहण कब होगा। पृथ्वी का सूर्य के परिक्रमा का समतल और चंद्र का पृथ्वी के परिक्रमा का समतल 5 डिग्री के कोन में होता है। यह दोनों समतल जिन बिंदुओं को प्रतिच्छेद करते हैं उन दो बिंदुओं को राहू केतु नाम दिया गया है। जब चंद्र इन बिंदुओं पर होता है तभी चंद्र ग्रहण होता है न कि हर अमावस्या और पुर्णिमा पर।" ऐसा श्री श्री गुरुकुल के समन्वयक, मनक शर्मा बताते हैं।

आप हमेशा सोचते होंगे कि आपकी दादी या नानी ग्रहण के दिन उपवास या व्रत क्यों रखती हैं, या दर्भ की कांडी खाने के बर्तनों में रखती हैं या ग्रहण के बाद स्नान करती हैं। बड़ी दिलचस्प बात है कि हमारे पुर्वजों में बिना किसी जटिल साधनों के सहारे ब्रह्मांडीय घटनाओं को और ग्रहण का समय एवं तारीख की भविष्यवाणी करने की गणितीय प्रविणता थी।

अब ध्यान करना है बहुत आसान ! आज ही सीखें !

 

क्या ग्रहण अशुभ होते हैं ?

आर्ट ऑफ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय प्राध्यापक दिनेश काशीकर जी ने बताया कि असल में ग्रहण आध्यात्मिक साधकों के लिए बहुत ही शुभ समय है और जब की सूर्य, चंद्र और पृथ्वी एक साथ होते हैं ऐसे में ध्यान और मंत्रोच्चारण करना साधकों के लिए बहुत लाभदायक होता है। ध्यान के लाभ बहुमान्य हैं साथ ही हाल के कुछ शोध कार्य दिमाग पर मंत्रोच्चारण के प्रभाव के बारे में बताते हैं। सांइटिफिक अमेरिका द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार प्राचीन मंत्रोच्चारण से संज्ञात्मक क्रिया से जुड़े दिमाग के भागों का विस्तार होता है। BITS हैदराबाद के हाल ही के एक अध्ययन ने दिखाया कि जो लोग मंत्रोच्चारण करते या सुनते हैं वे ज्यादा प्रसन्न और शांत होते हैं। दस मिनट के लिए 'ॐ नमः शिवाय' का जाप किजीए और फर्क देखिए। आप ललिता सहस्त्रनाम या विष्णु सहस्त्रनाम का जाप भी कर सकते हैं।

ग्रहण के दौरान उपवास या व्रत करने के लिए क्यों कहा जाता है ?

ग्रहण के दौरान तरंगों की लंबाई और प्रकाश विकिरण की तीव्रता पृथ्वी के सतह पर कम हो जाती है। खास कर नीले तथा पराबैंगनी विकिरण जो प्राकृतिक विसंस्करण के गुणधर्म के लिए जाने जाते हैं वे ग्रहण के दौरान बहुत कम उपलब्ध हो जाते हैं। इससे भोजन में सूक्ष्म जीवों का अनियंत्रित विकास हो जाता है जो खाने योग्य नहीं रहता। आपको खाली पेट रहने की सलाह देने का एक मुख्य कारण यह भी है कि खाली पेट से किया ध्यान और मंत्रोच्चारण का असर भरे पेट से किए गए ध्यान और मंत्रोच्चारण से कहीं अधिक होता है। इस लिए उचित होगा कि ग्रहण के दो घंटे पहले तक खाना रोक दें ताकि ग्रहण के दौरान ध्यान में बैठने तक सारा खाना हज़म हो जाए।

ग्रहण के दौरान अन्न सेवन के कुछ नियम :

  • ग्रहण के दो घंटे पहले तक भोजन करना रोक दें।
  • ग्रहण के पहले बना भोजन जारी न रखें ताकि ग्रहण के वक्त के घातक विकिरण भोजन सोख न लें।
  • बूढ़े, बिमार और गर्भवती महिला भोजन कर सकते हैं।
  • पानी पीना टालिए। बहुत प्यास लगी हो तो बहता पानी या नारीयल पानी पी सकते हैं।

ग्रहण के दौरान खाने के बर्तनों में दर्भ क्यों रखते हैं ?

ग्रहण के समय लोग सड़ने वाले खाने के बर्तनों में दर्भ घास रखते हैं और ग्रहण के बाद निकाल देते हैं, जैसे कि उपर समझाया गया है सुक्ष्म जीवों का अनियंत्रित विकास हो जाता है और दर्भ प्राकृतिक किटाणुनाशक होने की वजह से बर्तनों में रखा जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि दर्भ घातक रासायनिक संरक्षको की जगह प्राकृतिक खाद्य संरक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और दर्भ घास की सतह के श्रेणीबद्ध अतिसुक्ष्म स्वरूप (nano patterns) की नकल उतारने वाले अप्राकृतिक सतह का स्वास्थ्य के देखभाल में अनुप्रयोग किया जा सकता है जहाँ जीवाणुरहित हालत की आवश्यकता होती होगी।

ग्रहण के बाद स्नान क्यों करना चाहिए ?

ग्रहण के समय हमारे आसपास बैक्टीरिया का बनना भी एक कारण है कि ग्रहण के बाद सिर पर से नहाने के लिए कहा जाता है।

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी कहते है

"आप चंद्र ग्रहण देख सकते हैं, कोई समस्या नहीं है। यह एक दिव्य घटना है। केवल नग्न आंखों के साथ सौर ग्रहण नहीं देखा जाना चाहिए। आपको कुछ चश्मा पहनना चाहिए क्योंकि किरण हानिकारक होते हैं।

 

हमारे प्राचीन लोगों ने कहा है कि ग्रहण के समय और ग्रहण से कुछ देर पहले कुछ खाना नहीं चाहिए। इसका कारण यह है की खाना अच्छी तरह पच चुका होता है और फिर आप ध्यान कर सकतें है। ऐसा कहा जाता है की ग्रहण के दौरान जब आप चिंतन/जाप, ध्यान या प्रार्थना करते हैं, तो इसका सौ गुना अधिक प्रभाव होता है। 

 

ग्रहण के दौरान सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक पंक्ति में आते हैं और इसलिए ब्रह्मांडीय किरणें इस तरह होती हैं कि उस समय आपके द्वारा किए गए किसी भी साधना का कई गुना अधिक प्रभाव पड़ता है।

 

तो ग्रहण के दौरान ध्यान करें, 'ॐ नमः शिवाय' या 'ॐ नमोः नारायण' का जप करें। यदि आप अब 108 बार जप करते हैं, तो इसका मतलब है कि आपने इसे दस हजार बार किया है।

 

साधकों के लिए यह एक बहुत ही शुभ समय है; यह बुरा समय नहीं है। यह मौज मस्ती और उपभोग के लिए एक बुरा समय है।"

 

चंद्र ग्रहण का समय

8 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 32 मिनट से शाम 7 बजकर 27 बजे तक लगेगा |

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