ज्ञान के लेख (Wisdom)

इतने सारे लोगों में से हमें कैसे पहचानते हैं गुरुदेव

प्रश्न : जब हम आपका फ़ोटो देखते है तब हमें लगता है कि आप हमको पहचानते हैं। पर जब आपसे प्रत्यक्ष में मिलते है तो लगता है कि आप हमें जानते ही नहीं। इतने सारे लोगों में से आप हमें कैसे पहचानते है

गुरुदेव: देखो इतने सारे बाल होते हैं सिर पे, किसी ने गिना है? नहीं। मगर एक बाल नोचें तो लगता है कि नहीं लगता? शरीर में हजारों, करोड़ों अणु, परमाणु, कण हैं। मगर एक कण को एक सुई लगे तो तुम्हें समझ में आता है कि नहीं आता है? महसूस होता है कि नहीं होता है? ऐसा ही है। 

बाहरी व्यवहार को इतना महत्त्व नहीं देना चाहिए 

बाहरी व्यवहार को इतना प्राधान्यता नहीं देना चाहिए, इतना महत्व नहीं देना चाहिए। कई बार यहाँ आश्रम में रह रहे हैं पाँच, छः, सात, आठ साल से, उनका भी मैं पूछता हूँ, उनका नाम क्या है, पूछता हूँ कभी। कभी एक ही बार मिले होंगे, दस साल के बाद आते हैं, तो मैं उनका नाम याद रख लेता हूँ, बोल लेता हूँ तुम्हारा यह नाम, उस वक्त तुमको तुम्हें मुझसे मिला था। तो हमारी चेतना जो है यह अनंत गुणवती है, अनंत शक्तिमयी है।

कब कौन सी शक्ति कहाँ प्रकट होगी, ये रहस्य है 

कब, कौन सी शक्ति का कब कहाँ प्रकट होता है, नहीं प्रकट होता है, यह कुछ बता नहीं सकते है। यह रहस्य है। इसलिए सभी संभावनाएँ हैं। ठीक है ना? पहचान-नहीं पहचान की बात ही छोड़ो। यहाँ सब एक है। दो अलग हो, तो ना पहचान के। जो मैं हूँ सो तू है। तू मेरे ही हो। यहाँ किसी को भी, कभी भी परायापन का अनुभव नहीं कराया, ना कराया जाएगा।

छोटे मन के कारण लगता है परायापन 

यदि तुमको ऐसा लगता है की मैं यहाँ का नहीं, पराया हूँ, वह तुम्हारी ही भूल है। और तुम्हारी मन की वजह से, छोटे मन की वजह से, छोटे विचार की वजह से तुमको लगता है मैं पराया हूँ। यहाँ कोई पराया नहीं। जहाँ प्रेम होता है वहाँ परायापन बिल्कुल हो ही नहीं सकता, असंभव है। हाँ! इधर उधर जाओगे, उधर सेक्युरिटी गार्ड रोकते हैं तो लगता है कि, अरे हमको नहीं जाने दे रहे हैं। वह छोटी सी गंगा कुटी में मान लो इतने सारे लोग घुस जाएंगे वहाँ फिर हवा भी घुस नहीं सकेगी फिर तो। तो इसलिए व्यवस्था के हिसाब से थोड़ा बहुत, इधर उधर बंदिश हो, मगर दिल में कही कोई बंदिश नहीं। 

संकलन एवं संपादन : रत्नम सिंह 

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित 

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