दिवाली समय है ज्ञान के दीपक जलाने का, भीतर व बाहर उत्सव मनाने का।

दिवाली शब्द का अर्थ 

संस्कृत से उत्पन्न दिवाली शब्द, का वस्तुतः अर्थ है पंक्तियाँ(आवली) प्रकाश (दीप) की। भारतीय पंचांग के अनुसार यह प्रकाश उत्सव  कार्तिक मास कि कालरात्रि(अमावस्या) को मनाया जाता है और यह अज्ञानता (अंधकार) पर ज्ञान (रौशनी) की विजय का प्रतीक है।

लोग दीवाली के दिन पटाखे क्यों जलाते हैं?

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर दिवाली के दिन आतिशबाजी से खेलने का कारण बताते हैं। जो भी नकारात्मकता- क्रोध, ईर्ष्या या डर, पिछले 1 साल में इकट्ठा हो गया है वह सब पटाखों के जरिये नष्ट हो जाना चाहिए। प्रत्येक पटाखे से, किसी व्यक्ति के प्रति नकारात्मकता को फोड़ देना चाहिए या ज्यादा से ज्यादा उस व्यक्ति का नाम पटाखे पर लिखें और फोड़ दें और यह जान लीजिए सभी गलत भावनाएँ, ईर्ष्या इत्यादि  जल गए हैं। लेकिन हम क्या करते हैं? नकारात्मकता को खत्म करने के बजाए, या हम चाहते हैं उस व्यक्ति का अंत हो जाए या हम स्वयं को नकारात्मकता की आग में जलाते रहते हैं। इसका उल्टा होना चाहिए। यह सोचना सभी नकारात्मकता या बुरी भावनाएँ उन पटाखों के साथ चली गई है, उस व्यक्ति के साथ फिर दोस्ती कर लें। हल्केपन, प्रेम, शांति और खुशी की भावनाओं के साथ जाए और उस व्यक्ति के साथ मिठाई खाइये और दिवाली मनाऐं। यही सच्ची दिवाली है, पटाके फोड़ते समय उस व्यक्ति की बुरी आदतें जला दें उस व्यक्ति को नहीं (हँसी)

दिवाली के दिन करते हैं धार्मिक कार्य 

 इस दिन पर लोग धार्मिक कार्य और पूजा करते हैं, अनेक दिव्य ऊर्जा के सम्मान में विशेषतः धन की देवी - लक्ष्मी देवी के लिए। वे पूर्वी धर्मों में बुराई पर अच्छाई की जीत का महत्व रखती है, रात्रि में दीए जलाये जाते हैं। कुछ जगहों पर, ऐसी मान्यता है रात भर दीए मृत्यु के देवता- यमदेव के सम्मान में जलाये जाते हैं और इसलिए "यमदीपदान" से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है ऐसे करने से अकालिक मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है।

संतों के जीवन में दिवाली का महत्त्व 

इस बहुत शुभ दिन पर, बहुत से साधु और महान व्यक्तियों ने समाधि प्राप्त की है और इस नश्वर शरीर को छोड़ा है। ऐसे महान संत जिसमें कृष्ण और महावीर भी सम्मिलित है। यह वही दिन है जब भगवान राम, सीता व लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास पश्चात आए थे। इस दिन सिख के श्री गुरु गोविंद सिंह की ग्वालियर किले से कैद से हुई वापसी मनाई जाती हैं।

बालक नचिकेत की कहानी 

साल के इस समय की एक रोमांचक कहानी कठोपनिषद् से एक छोटे बालक नचिकेत की है। जिसका मानना था,यम, मृत्यु के भगवान अमावस्या के रात्रि जीतने काले है। किंतु जब वह यम से व्यक्तिगत तौर पर मिले, वे यम के शांत मुखाकृति व गरिमा को देखकर हैरान रह गया। यम ने नचिकेत से कहा सिर्फ मृत्यु के अंधकार के जरिये निकलकर ही इंसान ज्ञान के उच्चतम प्रकाश को देख पाता है और उसकी आत्मा शरीर रूपी बंधन से छूटकर ईश्वर में एक हो जाती है। नचिकेत को तब सांसारिक जीवन और मृत्यु के महत्व का एहसास हुआ। उसकी सभी शंकाएं शांत हो गयी, उसने पूर्ण रूप से दिवाली के उत्सव में भाग लिया।

इस दीवाली पर हम प्रार्थना करते हैं और धन्यभागी महसूस करें- इस संसार के प्रत्येक कोने में समृद्धि हो-प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में प्रेम, खुशी व प्रचुरता का अनुभव करें।