एक सूखी नदी का कायाकल्प

जब मैं कर्नाटक सरकार में जल संसाधन के जियोमैटिक्स सेंटर का नेतृत्व कर रहा था, तब मुझे पहली बार जल निकायों को फिर से पुनर्जीवित करने का विचार आया। मैंने पहली बार जल निकायों को फिर से जीवंत करने के लिए यह योजना बनाई और मेरी टीम ने तब, 60 कि.मी. वर्ग की एक नदी की धारा को  पुनर्जीवित किया।

 इस सफलता के साथ, मैंने सोचा कि क्यों न इसे बड़े पैमाने पर किया जाए? मैंने रिमोट सेंसिंग तकनीक की मदद से आस-पास के नदी- घाटियों को पुनर्जीवित करने के लिए कई योजनाएँ बनाईं।

जब मैं इन योजनाओं के बारे में प्रस्ताव लेकर कई संस्थानों में गया और मैंने अपनी बात रखी तो किसी ने भी मेरा समर्थन नहीं किया। कुछ लोगों ने तो मेरे विचारों को खारिज भी कर दिया।

मुझे नहीं पता था कि मैं उस उम्र में अपने इस सुंदर सपने को साकार करूंगा, जबकि ज्यादातर लोग अपने पोते-पोतियों के साथ मस्ती करते हैं।

 2013 में, मुझे कुमुदवती नदी को पुनर्जीवित करने पर लिखी गई एक पुस्तक को लॉन्च करने के लिए आमंत्रित किया गया था।

लॉन्च के बाद, लोगों का एक समूह  मेरे पास आया और कहा कि हम कुमुदवती के लिए कुछ करना चाहते हैं, हमें बताएं कि हम कैसे मदद कर सकते हैं। मैं खुशी से आश्चर्यचकित हो गया ।

मैंने उन्हें कायाकल्प परियोजना शुरू करने के लिए उसी सप्ताह कुमुदवती बेसिन में ले जाने का फैसला किया। 

मेरे दिमाग में कोईकार्यनीति नहीं थी, सिर्फ एक तकनीकी(टेक्निकल) योजना।

वास्तव में  हम  कैसे शुरू करेंगे और किन संसाधनों के साथ.हम बेसिन में कम से कम 'शुरू करने और कुछ करने' के लिए गए थे। वह एक जैविक स्वयंसेवी परियोजना अब 43 नदियों तक हो गई है।

जिन विचारों का एक बार उपहास किया गया था, वे  प्रत्येक कायाकल्प परियोजना की आधारशिला हैं। जैसे मेरे लिए, कायाकल्प परियोजना ने मुझे फिर से जीवंत कर दिया है - 60 के दशक में एक सेवानिवृत्त वैज्ञानिक!

हालाँकि, जब हमने पहली बार कुमुदवती नदी बेसिन के पास कायाकल्प परियोजना शुरू की तो ग्रामीणों ने सोचा कि हम लोग  अच्छे नहीं हैं इसलिए वे नदी के किनारे हमारी निर्माण सामग्री भी चुरा लेते थे हम प्रगति के लिए जो भी कदम उठाते, वे हमें एक वर्ग में पीछे धकेल देते। स्वयंसेवकों और ग्रामीणों को जब मैं एक साथ लाया, और उन्हें हमारी पहल (शुरुआत) के बारे में बताया और  शिक्षित किया,जैसे ही स्थानीय लोगों को जल संकट के बारे में पता चला और उनके स्थानीय कुओं में वे अधिक पानी होने के ठोस परिणाम देखने लगे तब उन्होंने हम पर भरोसा करना शुरू कर दिया और बेसिन के कायाकल्प में स्वेच्छा से हमारी मदद करने आए। 

परियोजना ने मुझे एक आश्चर्यजनक सबक सिखाया है, भले ही कोई कार्य कितना भी असंभव लग सकता है, और लोग आपके सपने के बहुत बड़े होने के लिए आपका कितना मज़ाक उड़ा सकते हैं, - यदि आप समाज के लिए काम करने के लिए दृढ़ हैं,तो कुछ भी असंभव नहीं,- कुछ भी हो सकता है, किसी भी तरह। 

ब्रह्मांड भी किसी संसाधन के साथ आपका समर्थन करता है, जिसकी आपको इस प्रक्रिया में आवश्यकता हो सकती है,बस याद रखें कि बहुत जल्द हार न मानें! ” - लिंगाराजू येल, निदेशक, नदी कायाकल्प परियोजनाएं, द आर्ट ऑफ लिविंग।