नवरात्रि के दौरान होम की तैयारी कैसे की जाती है ?

आर्ट ऑफ़ लिविंग नवरात्रि की पृष्ठभूमि क्या है?

नवरात्रि पूजा की तैयारी किस प्रकार की जाती है ?

हम देखते हैं कि पूजा मंडप में सभी कुछ निर्धारित समय पर ही होता है| नवरात्रि में समय का क्या महत्व है?

होम के दौरान देवी ऊर्जा कैसे प्रकट होती है?

वेद छात्रों को किस प्रकार की ट्रेनिंग दी जाती है, कि वे समय अनुरूप सारे कार्य संपन्न कर लेते हैं?


आर्ट ऑफ़ लिविंग नवरात्रि की पृष्ठभूमि क्या है?

उत्तर: नवरात्रि के दो मुख्य प्रकार होते हैं। एक वह, जो अप्रैल में चैत्रपक्ष में आती है। इसे ‘वसंत नवरात्रि’ कहते हैं और यह मुख्यतः उत्तर भारत में मनाई जाती है। दक्षिण भारत में ‘शरद नवरात्रि’ मनाई जाती है, जो सितम्बर-अक्टूबर के महीने में अश्विन पक्ष में आती है।

आर्ट ऑफ़ लिविंग में, पूज्य गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के आशीर्वाद से शरद नवरात्रि मनाई जाती है, जिसे पृथ्वी के प्रत्येक जीव के लाभ, शांति और समृद्धि के लिए मनाया जाता है। देवी का आवाहन किया जाता है जिससे सभी लोगों में कृपाशीर्वाद से ज्ञान और निम्नलिखित तीन शक्तियों का उदय होता है –

  • इच्छा शक्ति – आत्म बल
  • क्रिया शक्ति – सही कर्म करने की शक्ति
  • ज्ञान शक्ति – सही कर्म का ज्ञान

नवरात्रि पूजा की तैयारी किस प्रकार की जाती है ?

नवरात्रि के आखिरी पांच दिनों में, अर्थात षष्टी तिथि (छंटा दिन) से पूजाओं का आयोजन किया जाता है।

पूजाओं की लिए यह पूर्व तैयारी की जाती है

  • पहले पूजा सामग्री इकठ्ठा की जाती है – द्रव्य संग्रहण और कितनी मात्रा में चाहिये – द्रव्य प्रमाण। यह सामग्री मुख्यतः केरला, हिमाचल प्रदेश और जम्मू से लाई जाती है।
  • दूसरा मुख्य काम है – यज्ञशाला को तैयार करना, जिसे यज्ञशाला लक्षण के अनुसार किया जाता है| इस प्रक्रिया को ‘यज्ञशाला निर्माण और मंडल लेपन’ कहा जाता है। इन में से कुछ मंडल हैं जैसे गणेश मंडल, वास्तु मंडल, नवग्रह मंडल और सुदर्शन मंडल। पंचभूत अर्थात पाँचों तत्वों की पूजा की जाती है। कलश में जल तत्व, हवनकुंड में अग्नि तत्व, मन्त्रों के जाप से वायु तत्व और मंडलों द्वारा पृथ्वी तत्व की पूजा की जाती है। ये सभी पूजा आकाश तत्व में होती है।
  • उसके बाद पंचासन वेदिका – जिस मंच पर चंडी यज्ञ के मुख्य कलश की स्थापना होती है।
  • इस मंच की नींव कूर्मासन (कछुआ, जो स्थिरता का प्रतीक है), उसके ऊपर अनंतासन (सर्प, जो सजगता का प्रतीक है)
  • इसके ऊपर सिंह (जो वीर्य का द्योतक है)
  • उसके ऊपर योगासन (आठ सिद्ध पुरुषों की मूर्ति जो अष्टांग योग का प्रतीक हैं)।
  • उन सबके ऊपर पद्मासन (कमल जो बुद्धत्व का प्रतीक है, पूर्ण विकसित चेतना का प्रतीक है)
  • सबसे ऊपर कलश की स्थापना होती है, जिसमें जल भरा होता है, और इसके अन्दर देवी माँ का आवाहन किया जाता है।
  • इन कलशों को तैयार करने के लिए इनमें पवित्र नदियों का जल और औषधीय जड़ी-बूटियाँ भरी जाती हैं। कलशों के ऊपर धागे बांधते हैं। कलश के ऊपर आम के पत्ते रखे जाते हैं और इन पत्तों के ऊपर नारियल रखा जाता है, जिसे चन्दन, कुंकुम, दर्भ घास और कुछ विशेष सुगन्धित पुष्पों से सजाया जाता है।
  • यज्ञ के शुरू होने से पहले, भूमि की पूजा अर्थात, वास्तुपूजा की जाती है। साथ ही यज्ञशाला के चारों ओर नौ प्रकार के खाद्य अनाज बोते हैं, और अंकुरार्पणं किया जाता है। यह खाद्य अनाज और किसानों के सम्मान में किया जाता है। यह प्रार्थना भूमि की उपजाऊता को बढ़ाने के लिए करते हैं।
  • होम कुंड की तैयारी – होम कुंड को यज्ञशाला की पूर्व दिशा में बनाते हैं। हमारे आश्रम में चंडी होम के लिए पद्म कुंड का निर्माण होता है। एक और अन्य प्रकार का कुंड होता है जिसे योनी कुंड कहते हैं। आप किस प्रकार का कुंड बना रहे हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि आप आहुति में कितनी मात्र में द्रव्य समर्पित कर रहे हैं। चतु स्तंभ पूजा अर्थात चार खम्बे (धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ईश्वर) की स्थापना अन्दर की ओर होती है। बाहर की ओर षोडशः स्तंभ पूजा अर्थात 16 खम्बे खड़े किये जाते हैं, जो मानव जीवन के 16 आयाम के प्रतीक हैं।
  • अष्टध्वज या आठ झंडे यज्ञशाला के बाहरी क्षेत्र में लगाये जाते हैं, और इन पर हाथी का चित्र बनाया जाता है।अष्ट मंगल या आठ उपकरण – दर्पणं (शीशा), पूर्णकुम्भ (कलश), वृषभ (बैल का चित्र), दो चामर (बालों के पंखे), श्रीवत्सम (चित्र), स्वस्तिकं (चित्र), शंख और दीप – ये सब यज्ञशाला के अन्दर के क्षेत्र में लगाये जाते हैं।
  • के क्षेत्र में रंगोली बनाई जाती है और यज्ञशाला को आम के पत्तों, केले की डंडी, गन्ने और दियों से भी सजाया जाता है।
  • के बॉर्डर को खाद्य अनाज के बीजों से सुशोभित करते हैं, जो जल्दी ही अंकुरित हो जाते हैं। इन अंकुरों में क्षमता होती है कि वे औषधि मन्त्रों को सोख लेते हैं। यह प्रार्थना की जाती है कि अनाज के ये बीज अच्छे से अंकुरित हों और चंडी होमा सुचारू रूप से संपन्न हो जाए।

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हम देखते हैं कि पूजा मंडप में सभी कुछ निर्धारित समय पर ही होता है| नवरात्रि में समय का क्या महत्व है?

नवरात्रि पूजा और अनुष्ठानों को एकदम निर्धारित समय पर आयोजित किया जाता है, जिसे शैवागम और शक्ततंत्र में निर्धारित किया गया है। और रुद्रयामलं, श्रद्धातिलकम, परशुराम, कल्पसूत्रम, श्री विद्या तंत्रमंद मन्त्र, महर्णवाद, देवी देवी महात्म्य जैसे धार्मिक ग्रंथों में लिखा गया है। इन शास्त्रों में बताया गया है कि इन पूजाओं और अनुष्ठानों को सही तरह से कैसे किया जाता है और इन्हें आयोजित करने का यथार्थ शुभ समय या ‘मुहुर्त’ क्या है। तब विशेषज्ञ पंडितों द्वारा इन दिशा निर्देशों का विस्तार से पालन होता है। हमारे गुरुकुल के सभी छात्रों को इस समय-अनुशासन में ज़ोरदार ट्रेनिंग दी जाती है। वे पहले वरिष्ठ विशेषज्ञ पंडितों के साथ सीखते हैं ताकि सही समय पर सभी अनुष्ठान संपन्न हो जाएँ।


होम के दौरान देवी ऊर्जा कैसे प्रकट होती है?

कला, तत्व, भुवन, मन्त्र, पद और वर्ण – इन्हें ‘शडध्वास’ कहते हैं और ये हमारे शरीर के शडधारा से जुड़े हुए हैं।

एक समूह में साधना करने पर हम आसानी से गहरे ध्यान में जा सकते हैं। हमें अपने शरीर में ही नहीं, बल्कि अपने वातावरण में भी परिवर्तन दिखेगा।


वेद छात्रों को किस प्रकार की ट्रेनिंग दी जाती है, कि वे समय अनुरूप सारे कार्य संपन्न कर लेते हैं?

वेद आगम संस्कृत महा पाठशाला के सभी छात्र प्रत्येक दिन योग, सुदर्शन क्रिया और ध्यान करते हैं, जिससे वे शारीरिक और मानसिक रूप से सजग रहते हैं। वह गुरुकुल के ट्रेनिंग प्रोग्राम के नियमों का भी पालन करते हैं।

इन छात्रों को मन्त्र दीक्षा भी दी जाती है, जिससे वे चंडी होम संपन्न कर सकते हैं। इन्हें होम के प्रत्येक चरण के बारे में भली-भाँति ट्रेनिंग दी जाती है जिससे वे वे चंडी होम के दिन सभी कुछ सुचारू रूप से समय-अनुसार कर पाते हैं। छात्रों को प्रायोगिक तौर पर चंडी होम कराया जाता है जो अगम पाठशाला में महा चंडी होम के एक हफ्ते पहले करते हैं। इसके साथ ही देवी महात्म्य का जाप भी 12 हफ़्तों तक करने का अभ्यास होता है।


नवरात्रि का महोत्सव आर्ट ऑफ़ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र का सबसे बड़ा उत्सव है जिसे हर वर्ष मनाया जाता है।  इसमें हजारों लोग भाग लेते हैं। नौ दिनों तक प्राचीन वैदिक पूजाओं का आयोजन सुनिश्चित समय के अनुसार किया जाता है और इस दौरान इस वातावरण में हर व्यक्ति को अलौकिक अनुभूति होती है।

आर्ट ऑफ़ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र की वेद आगम संस्कृत महा पाठशाला के प्राचार्य (प्रिंसिपल) होने के नाते, श्री ए.एस.सुन्दरमूर्ति शिवम पर बहुत कुछ निर्भर है, क्योंकि ये ही इन पूजाओं के मुख्य पंडित हैं।

आप पंडितों के परिवार से आये हैं और अभी तक 1005 कुम्भाभिषेक और 2100 से ज्यादा चंडी होमा का आयोजन पूरे विश्व में कर चुके हैं। यह आर्ट ऑफ़ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में सन् 1994 से नवरात्रि यज्ञों का आयोजन कर रहे हैं। प्रस्तुत हैं कुछ प्रश्नों के गहन उत्तर, खुद मुख्य पंडित जी के शब्दों में ऊपर दिए गए है।