संस्कृति

नरक चतुर्दशी क्या है और क्यों मनाई जाती है

 

एक दिन : कई नाम 

नरक चतुर्दशी पाँच दिवसीय दिवाली उत्सव का दूसरा दिन है । यह पाँच दिन हैं : 

1.धनतेरस 

2.नरक चतुर्दशी 

3.दीपावली 

4.गोवर्धन पूजा

5. भाई दूज 

इस दूसरे दिन के कई नाम हैं, जैसे काली चौदस, रूप चौदस, छोटी दिवाली व नरक निर्वाण चतुर्दशी ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सत्यभामा , जो श्रीकृष्ण की आठ मुख्य पत्नियों में से एक थी , ने नारका नाम के राक्षस का वध किया था । उस दिन हिंदू कैलेंडर , विक्रम सम्वत् के कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की  चतुर्दशी थी । इसलिए इस त्योहार का नाम नरक चतुर्दशी हो गया। 

कलिका पुराण के अनुसार एक और वर्णन भी है जिसके अनुसार नर्कासुर का वध देवी काली ने किया था। इसलिए भारत के कुछ हिस्सों , जैसे गुजरात और राजस्थान , में यह पर्व काली चौदस के रूप में मनाया जाता है। रूप चौदस इस त्योहार का  एक और नाम है जब लोग सुंदरता को मनाते हैं । 

इस दिन को छोटी दिवाली भी कहा जाता है , क्योंकि यह दिवाली से एक दिन पहले आता है । 

नर्कासुर अवतार 

नर्कासुर को वरदान मिला था कि उसका अंत केवल भू - देवी ( पृथ्वी माता ) के हाथों से ही होगा । उसने बलपूर्वक 16,000 कन्याओं का अपहरण करके उनसे विवाह कर लिया और उन्हें बंदी बना लिया , क्योंकि उसे डर था कि इनमें से ही कोई भी भू-देवी का रूप हो सकती है । यह असर समूचे संसार में हिंसा करने लगा जिससे चहुं ओर दुःख फैलने लगा । 

उसके राज्य की प्रजा नर्कासुर के अत्याचारों से बहुत दुखी थी । इस असुर का अंत करने हेतु ,  श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा संग मिल कर नर्कासुर और उसकी सेना के विरुद्ध भीषण युद्ध किया । अंत में सत्यभामा , जो भू-देवी का ही अवतार थी , ने नर्कासुर के साथ द्वंद युद्ध किया और उसका वध कर दिया । इस प्रकार वो वरदान परिणित हुआ । भगवान श्रीकृष्ण ने 16,000 महिलाओं को और प्रगज्योतिसपुर को नर्कासुर की यातनाओं से मुक्त किया । यह दन्तकथा आम तौर पर बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में सुनाई जाती है । 

क्या श्रीकृष्ण ने 16,000 महिलाओं से विवाह किया था?

 

नर्कासुर के अंत के पश्चात एक और महत्वपूर्ण घटना घटी । नरक चतुर्दशी वह दिन भी है जब श्रीकृष्ण ने 16,000 महिलाओं से विवाह किया । क्या श्रीकृष्ण ने  वास्तव में उनसे विवाह किया था ? कुछ लोगों ने इस कहानी के पीछे का गूढ़ रहस्य समझाया है , और लोगों ने श्रीकृष्ण के इतनी सारी महिलाओं को पत्नी के रूप में अपनाने पर आलोचना भी की है । कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने श्रीकृष्ण के विशाल हृदय का गुणगान किया है । 

नर्कासुर की मृत्यु के उपरांत स्वतंत्र होने पर 16,000 महिलाएं  सामूहिक रूप से आत्महत्या करना चाहती थी । उन्होंने श्रीकृष्ण को बताया कि समाज उन्हें कभी नहीं अपनाएगा, क्योंकि वे इतना लम्बा समय नर्कासुर जैसे राक्षस संग बिता चुकी थीं, और जिसने बहुत सी को तो मार भी दिया था तथा और बहुत सारी को यातनाएँ दी थीं । इसलिए यही ठीक रहेगा कि वे अपनी जीवनलीला समाप्त कर लें। 

श्रीकृष्ण ने उनको विश्वास दिलाया कि वह स्वयं “अपना उप नाम देकर” उनका सम्मान करेंगे।

तथा उस दिन के बाद वे सब “नर्कासुर की पत्नियाँ “ नहीं कहलाई जाएँगी । वे समाज में पूरे सम्मान के साथ रह पाएंगी । श्रीकृष्ण ने इन महिलाओं को नया जीवन दिया और उन्हें द्वारका में रहने हेतु निवास स्थान भी दिए । यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जिससे श्रीकृष्ण के निस्स्वार्थ कर्म को देखा जाता है । 

सहस्रार चक्र  से  सम्बंध 

हमारी  तांत्रिक योग परम्परानुसार सहस्रार सातवाँ चक्र है , क्राउन चक्र , जो हमारे सिर के शीर्ष पर होता है । भारत के सात पवित्र स्थानों में से द्वारका सहस्रार का प्रतीक है । इस चक्र की परिकल्पना 1,000 पंखुड़ियों के रूप में की गयी है और इनमें से प्रत्येक पंखुड़ी की 16 कलाएँ हैं । इस प्रकार श्रीकृष्ण की 16,000 पत्नियाँ सहस्रार चक्र की 16,000 कलाओं को दर्शाती हैं। जब श्रीकृष्ण के रूप में दिव्य शक्ति क्राउन चक्र तक पहुँचती है , तो यह सुप्त कलाएँ जागृत हो उठती हैं । यह एक आयाम है जिस रूप में श्रीकृष्ण की इस कहानी को कुंडलिनी योग का पालन करने वाले देखते हैं । 

योगमाया की घटना

 

इस कहानी को एक और रहस्यमयी परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाता है श्रीमद् भागवत के 69 वें अध्याय के दसवें कांड में ऋषि नारद आश्चर्यचकित होते हुए कहते हैं : 

“यह अत्यंत आश्चर्यजनक है कि श्रीकृष्ण ने , एक स्थूल शरीर में रहते हुए एक ही समय में , भिन्न भिन्न महलों में 16,000 महिलाओं से विवाह किया !” 

ऋषि नारद , यह देखने के लिए कि भगवान श्रीकृष्ण इतने बड़े परिवार को कैसे संभाल रहे हैं , स्वयं द्वारका गए।वह यह देख कर आश्चर्यचकित हो गए कि श्रीकृष्ण कैसे एक ही समय में अपनी प्रत्येक पत्नी के साथ समय व्यतीत कर रहे हैं ।यह दुर्लभ घटना , जिसमें श्रीकृष्ण कई रूपों में प्रकट हो रहे थे , उनका  योगमाया स्वरूप कहा जाता है । इस रूप में श्रीकृष्ण ने अपनी योगशक्ति द्वारा अपने आप को विस्तृत करके अपनी प्रत्येक पत्नी के साथ विवाह किया और उनके संग रहे । 

यहाँ यह देखना दिलचस्प है की “योगमाया” शब्द में “माया” शब्द है जिसका अर्थ है मायावी और अस्थायी। 

तीन प्रकार की माया पर विजय पाना 

नर्कासुर की घटना में तीन प्रकार की माया दर्शायी गयी हैं :

नर्कासुर के रूप में महामाया (अज्ञानता) 

नर्कासुर महामाया (अज्ञानता ) को दर्शाता है, जो हमें सत्य को जानने में बाधक है। वह महामाया का प्रतीक है , जिसका आधार तमो गुण में है। 

सत्यभामा के रूप में मोहमाया (राग / आसक्ति) 

सत्यभामा की पहचान श्रीकृष्ण की ओर असीम आसक्ति के लिए है। भागवत् के तुलाभारा प्रसंग के अनुसार वह अपनी अकूत धन सम्पदा के बल पर श्रीकृष्ण पर अपना एकाधिकार प्राप्त करना चाहती थी। परंतु वह इसमें सफल नहीं हो सकी। रुक्मिणी की श्रद्धा सत्यभामा की आसक्ति पर भारी पड़ी। इस प्रकार, सत्यभामा मोहमाया की प्रतीक है जिसका आधार रजोगुण में है। 

कृष्णा के रूप में योगमाया ( दैवीय शक्ति ) 

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत् गीता में बताया है कि उनकी दिव्यता योगमाया से ढकी हुई है और हमें उनके वास्तविक स्वरूप का अनुभव पाने के लिए इस माया रूपी आवरण को पार करना होगा । योगमाया का मूल आधार सतोगुण है।

नरक चतुर्दशी वो दिन है जो हमें स्मरण कराता है कि हमें इन तीनों माया पर विजय पानी है ताकि हम दीपावली पर ज्ञान का दीपक प्रज्ज्वलित कर सकें । देवी महालक्ष्मी माया का ही प्रतीक है और अंततः माया के पार जाने के लिए उन्हें प्रसन्न करना महत्वपूर्ण है। 

 ( यह लेख - गुरुदेव  श्री श्री रविशंकर के प्रवचनों से प्रेरित ) 

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