ज्ञान के लेख (Wisdom)

आनंद के रंग से अपनी चेतना विकसित करें | Relationship between Holi and Happines

अगले पांच सालों के लिए होली उत्सव की तारीख पता करें | Know the dates for Holi festival for next five years

धुलंडी| रंगवाली होली की तारीख

18 मार्च, 2022शुक्रवार 
08 मार्च, 2023बुधवार 
25 मार्च, 2024सोमवार 
14 मार्च, 2025शुक्रवार 
04 मार्च, 2026बुधवार 

होली और आनंद पर निबंध | Essay on Holi and Happines

यह संसार रंगभरा है। प्रकृति की तरह ही रंगों का प्रभाव हमारी भावनाओं और संवेदनाओं पर पडता है। जैसे क्रोध का लाल, ईश्या का हरा, आनंद और जीवंतता का पीला, प्रेम का गुलाबी, विस्तार के लिए नीला, शांति के लिए सफेद, त्याग के लिए केसरिया और ज्ञान के लिए जामुनी। प्रत्येक मनुष्य रंगों का एक फव्वारा है।

पुरानी कथाओं में हिरण्यकश्यपु स्वयं का महिमामंडन चाहता था जबकि उसका पुत्र प्रहलाद विष्णु भक्त था। उसने तमाम प्रयास किए उसे बदलने के लिए और बहन होलिका के साथ गोद में बैठाकर अग्निकुंड में भी बनाया लेकिन होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया। प्रहलाद की भक्ति में इतनी गहराई है कि उससे पूराने सभी कर्म, संस्कार और उनके प्रभाव मिट जाते हैं।

देखा जाय तो हिरण्यकश्यपु स्थूलता का प्रतीक है और प्रहलाद भोलेपन,आनंद और श्रृद्धा का प्रतीक है। चेतना को भौतिकता तक सीमित नहीं किया जा सकता। हिरण्यकश्यपु भौतिकता से सब कुछ प्राप्त करना चाहता था। कोई भी जीव भौतिकता से परे है और यहीं नारायण भी होते हैं। होलिका भूतकाल की प्रतीक है और प्रहलाद वर्तमान का आनंद का प्रतीक है। यह प्रहलाद की भक्ति ही थी जो उसे आनंद में बनाए रखती थी। आनंद जब जीवन में होता है तो जीवन उत्सव बन जाता है। भावनाएँ आपको अग्नि की तरह जलाती है लेकिन यह रंगों की फुहार की तरह हो तो जीवन सार्थक हो जाता है। अज्ञानता में भावनाएँ कष्टकारी होती हैं लेकिन ज्ञान में यही भावनाएँ जीवन में रंग भर देती हैं।

जीवन रंगों से भरा होना चाहिए न कि उबाऊ। जीवन में हम कई भूमिकाएँ निभाते हैं उनकी भूमिकाएँ और भावनाएँ स्पष्ट होना चाहिए अन्यथा कष्ट निष्चित है। घर में यदि आप पिता को रोल निभा रहे हैं तो वह अपने कार्यस्थल पर नहीं कर सकते। जब जीवन में विभिन्न रोल को हम मिलाने लगते हैं तो हम उलझने लगते हैं। गलतियाँ करने लग जाते हैं। जीवन में जो भी आप आनंद का अनुभव करते हैं वह आपको स्वयं से ही प्राप्त होता है। जो आपको जकड कर बैठा है उसे आप छोड देते हैं और शांत होकर बैठ जाते हैं तो यह ध्यान हो जाता है। ध्यान में आपको गहरी नींद से भी ज्यादा विश्राम मिलता है क्योंकि आप सभी इच्छाओं से परे होते हैं। यह मस्तिष्क को गहरी शीतलता देता है और आपके तंत्रिका तंत्र को पुष्ट करता है, उसे नीव जीवन प्रदान करता है।

उत्सव चेतना का स्वभाव है और जो उत्सव मौन से उत्पन्न होता है वह वास्तविक है। यदि उत्सव के साथ पवित्रता जोड़ दी जाए तो वह पूर्ण हो जाता है। केवल शरीर और मन ही उत्सव नहीं मनाता है बल्कि चेतना भी उत्सव मनाती है। इसी स्थिति में जीवन रंगों से भर जाता है।

 गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित 

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