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  1. गुरु के समीप

    यदि तुम, खुद को, गुरु के निकट अनुभव नहीं कर रहे हो, तो इसका कारण, तुम ही हो। तुम्हारा मन, तुम्हारा अहंकार, तुम्हें दूर रख रहा है। जो कुछ भी, तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है, अंतरंग है, उसे गुरु के साथ, बाँट लो, बता दो। संकोच मत करो, शरमाओ नहीं, इस पर, स्वयं अप ...
  2. [[{"fid":"87605","view_mode":"default","fields":{"format":"default","field_file_image_alt_text[und][0][value]":"dattatreya jayanti significance","field_file_image_title_text[und][0][value]":"dattatreya jayanti significance"},"type":"media","field_deltas":{"2":{"format":"default","field_file_image_alt_text[und][0][value]":"dattatreya jayanti significance","field_file_image_title_text[und][0][value]":"dattatreya jayanti significance"}},"link_text":null,"attributes":{"alt":"dattatreya jayanti significance","title":"dattatreya jayanti significance","class":"media-element file-default","data-delta":"2"}}]] गुरूजी आज दत्तात्रेय जयंती है। हमें दत्तात्रेय के विषय में कुछ बताइए। जन्मदिन या जयंती का आयोजन उत्सव मनाने और उस व्यक्ति में विद्यमान सद्गुणों को याद करने के लिए किया जाता है। दत्तात्रेय ने सृष्टि में उपस्थित समस्त समष्टि से ज्ञान प्राप्त किया था। अत्रेय ऋषि की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने दत्ता को गोद ले लिया। दत्ता या दत्त का अर्थ होता है- दिया हुआ, पाया हुआ या अपनाया हुआ। इसीलिए जब कोई किसी बच्चे को गोद लेता है तो उसे “दत्त स्वीकरा” कहा जाता है। अतः जब आत्रेय और अनुसूया ने बच्चे को गोद लिया तो उसे “दत्तात्रेय” कहा गया। त्रिशक्तियों का साथ होना “गुरु शक्ति” है! इस बालक में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव, तीनों की ही शक्तियां विद्यमान थीं। सृजनशीलता अनेक लोगों में होती है, पर सभी लोग इसका सदुपयोग नहीं कर पाते। कुछ लोग आरंभ तो अच्छा कर देते हैं लेकिन उसे निरंतर बनाए नहीं रख सकते। सृजनशीलता ही "ब्रह्मा शक्ति" है। यदि हमारे भीतर ब्रह्मा शक्ति है, तो हम सृजन तो कर लेते हैं परन्तु ये नहीं जानते कि उसे कायम कैसे रखा जाए। किसी काम या बात को बनाए रखना, कायम रखना “विष्णु शक्ति” है। हमें ऐसे अनेक लोग मिल जाते हैं जो अच्छे प्रबंधक या पालक होते हैं। वे सृजन नहीं कर सकते परन्तु यदि उन्हें कुछ सृजन कर के दे दिया जाए तो वे उसे अत्युत्तम ढंग से निभाते हैं। अतः व्यक्ति में विष्णु शक्ति अर्थात सृजित को बनाए रखने की शक्ति का होना भी अत्यंत आवश्यक है। इसके बाद आती है ‘शिव शक्ति’ जो परिवर्तन या नवीनता लाने की शक्ति होती है। अनेक लोग ऐसे होते हैं जो चल रही किसी बात या काम को केवल कायम या बनाए रख सकते हैं परन्तु उन्हें ये नहीं पता होता है कि परिवर्तन कैसे लाया जाता है या इसमें नए स्तर तक कैसे पँहुचा जाए। इसलिए शिव शक्ति का होना भी आवश्यक है। इन तीनों शक्तियों का एक साथ होना “ गुरु शक्ति ” है। गुरु या मार्गदर्शक को इन तीनों शक्तियों का ज्ञान होना चाहिए। दत्तात्रेय की भीतर ये तीनों शक्तियां विद्यमान थीं, इसका अर्थ ये हुआ कि वे गुरु शक्ति के प्रतीक थे। मार्गदर्शक, सृजनात्मकता, पालनकर्ता एवं परिवर्तनकर्ता सभी शक्तियां एक साथ! दत्तात्रेय ने हर एक चीज से सीखा। उन्होंने समस्त सृष्टि का अवलोकन किया और सबसे कुछ न कुछ ज्ञान अर्जित किया। असंवेदनशील से संवेदनशीलता की राह पर चलें! श्रीमद भागवत में उल्लिखित है कि "यह बहुत ही रोचक है कि उन्होंने कैसे एक हंस को देखा और उससे कुछ सीखा, उन्होंने कौवे को देख कर भी कुछ सीखा और इसी प्रकार एक वृद्ध महिला को देख कर भी उससे ज्ञान ग्रहण किया।" उनके लिए चारों तरफ ज्ञान बह रहा था। उनकी बुद्धि और ह्रदय ज्ञानार्जन एवं तत्पश्चात उसे जीवन में उतारने के लिए सदैव उद्यत रहते थे। अवलोकन (प्रेक्षण) से ज्ञान आता है और अवलोकन या प्रेक्षण के लिए संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है। यदि हम अपनी ही दुनिया में उलझ के रह गए हैं तो हम अपने आस-पास के लोगों से मिलने वाले संदेशों के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं। जब लोग अपनी बातों को ज्यादा महत्त्व देने लगते हैं तो दूसरों के दृष्टिकोण पर उनकी नज़र जाती ही नहीं है। और ऐसे लोग ये भी मानते हैं कि उनकी धारणा बिलकुल सही है जबकि हम जानते हैं कि वे सही नहीं हैं।

    गुरूजी आज दत्तात्रेय जयंती है। हमें दत्तात्रेय के विषय में कुछ बताइए। जन्मदिन या जयंती का आयोजन उत्सव मनाने और उस व्यक्ति में विद्यमान सद्गुणों को याद करने के लिए किया जाता है। दत्तात्रेय ने सृष्टि में उपस्थित समस्त समष्टि से ज्ञान प्राप्त किया था। अत्रेय ...
  3. Take Up The Challenge

    (Below is a continuation of the post Truth Gives You Strength) Gurudev, could you give us a concrete five point agenda that each citizen can do to create a divine society. Sri Sri Ravi Shankar: 1) Be stress free - keep your body, mind and spirit free from ...
  4. धनतेरस और परिपूर्णता | Dhantheras and abundance

    ❝ सभी को दीवाली की शुभकामनायें। आज धनतेरस से दीपावली का पर्व शुरू होता हैं। धनतेरस है, जीवन में प्रचुरता को महसूस करने के लिए - ऐसे जैसे सब कुछ आपके पास ही हो। ऐसे भाव से सम्पन्नता और बढ़ती हैं। संपन्न और संतुष्ट होने का भाव रखो। जीवन में यह मान कर आगे बढ ...